तमिलनाडू की राजनीति में रजनीकांत के बयान ने राजनितिक पंडितों को कन्फ्यूज कर दिया है। दरअसल पत्रकारों ने पूछा कि क्या भाजपा वाकई खतरनाक है तो रजनीकांत ने कहा था ‘अगर 10 पार्टियां 1 आदमी के खिलाफ इकट्ठी हो रही हैं तो आप समझ सकते हैं कि कौन ज्यादा ताकतवर है?’ उनका इशारा साफ़ था कि वो अभी भी मोदी को मजबूत मानते हैं।
रजनीकांत के इस बयान से जहाँ पॉलिटिकल पंडित मोदी से उनकी नजदीकियों के रूप में देख रहे हैं वही ये पूछे जाने पर कि ‘क्या भाजपा खतरनाक है?’ रजनीकांत ने ये कह कर फिर सबको असमंजस में डाल दिया कि ‘अगर पार्टियों को लगता है वो खतरनाक तो जरूर होगी।’ साथ ही ये भी कहा कि ‘अभी मैं फुलटाइम पॉलिटिशियन नहीं बना हूँ इसलिए ये मैं कैसे बता सकता हूँ कि वो खतरनाक है या नहीं? जनता बताएगी वो खतरनाक है या नहीं?’
एक दिन पहले ही डिमॉनीटिजेशन पर बयान देते हुए उन्होंने कहा था कि इसे सही ढंग से लागू नहीं किया जा सका। रजनीकांत उन लोगों में से थे जिन्होंने डिमॉनीटाइजेशन की घोषणा होने के बाद सबसे पहले इस फैसले की और मोदी की तारीफ़ की थी। दो साल बाद भी उन्होंने इस फैसले की आलोचना नहीं की, बल्कि बस इतना कहा कि इसे सही ढंग से लागू नहीं किया जा सका।’ ऐसे वक़्त में जब सभी पार्टियां दो साल बाद भी इस फैसले की आलोचना कर मोदी को घेर रही है वही इस मुद्दे पर मोदी के लिए रजनी का सॉफ्ट रुख बहुत कुछ बयान कर रहा है।
31 दिसंबर 2017 को जब रजनीकांत ने अपनी नयी पार्टी के गठन की घोषणा की थी तब माना जा रहा था कि मोदी से अच्छे रिश्तों के कारण वो भगवा पार्टी के साथ गठबंधन करेंगे लेकिन उन्होंने अपने पत्ते नहीं खोले और हर कोई उनके अगले कदम के बारे में अनुमान ही लगता रहा।
एक साल बाद भी उनकी पार्टी का कोई अस्तित्व नहीं है। लेकिन भाजपा की ये कोशिश है कि रजनीकांत को अपने साथ जोड़ने की। इस बार अनुमान है कि उत्तर भारत में पार्टी की सीटें घटेंगी। ऐसे में पार्टी दक्षिण से कुछ सीटें हासिल करना चाहेगी। केरल में पार्टी अभी भी संघर्ष कर रही है। आंध्र में चंद्रबाबू नायडू के साथ छोड़ जाने के बाद पार्टी को अभी तक कोई नया साझीदार नहीं मिला है। कर्नाटक उपचुनाव के रिजल्ट ने पार्टी को ये बता दिया है कि यहाँ से कोई उम्मीद न रखे। ऐसे में भाजपा रजनीकांत के सहारे तमिलनाडू के बेडा पार लगाना चाहती है। तमिलनाडू में लोकसभा की 39 सीटें है।
तमिलनाडू में भाजपा सत्ताधारी अन्नाद्रमुक के साथ नहीं जाना चाहेगी क्योंकि जिस तरह से लगातार दूसरी बार जीतने के बाद पार्टी का गवर्नेंस रहा है उससे लोगों में उसके प्रति एक सत्ता विरोधी रुझान होगा और दूसरी बात ये कि जयललिता के जाने के बाद अन्नाद्रमुक कमजोर पड़ गई है। ऐसे में भाजपा अपने नए सहयोगी के रूप में रजनीकांत को जोड़ना चाहेगी जिनके फॉलोवर्स काफी ज्यादा हैं और जो प्रदेश में अपना एक प्रभाव रखते हैं।
लेकिन रजनीकांत के मन में क्या है ये कोई नहीं जानता। एक दोस्ती के अलावा रजनी और मोदी के काफी असमानताएं है। तमिलनाडु की राजनीति में रजनी का कोई दुश्मन नहीं है। और उन्होंने अब तक किसी भी पार्टी के खिलाफ खुल कर कुछ नहीं कहा है। रजनी की इमेज एक साफ़ सुथरी इमेज है जिसके सहारे वो अपने प्रशंषकों के दिलों पर राज करते हैं जबकि मोदी अपने राजनितिक दुश्मनो को पूरी तरह से तबाह करने के लिए जाने जाते हैं।
फिलहाल तो भाजपा को तमिलनाडू में रजनीकांत से ही उम्मीदें है और रजनीकान्त अभिनेता से पार्टटाइम नेता तो बन गए लेकिन अभी भी उनके फुलटाइम राजनेता बनने का इंतज़ार है।