मुझे भारतीय टीम से निकाले हुए 40 साल हो चुके हैं और मैं इस दर्द को अपने जीवन में जी रहा हूं। युवराज के रिटायरमेंट के दिन, मैं बताना चाहता हूं कि युवराज की कहानी उस समय शुरू हुई थी। जब वह डेढ़ साल का था जब मैंने उसे अपना पहला क्रिकेट बैट और गेंद दी। मेरी मां गुरनाम कौर ने उन्हें पहली गेंद फेंकी। अभी भी हमारे पास वह तस्वीर है।
बड़े होते हुए, वह स्केट करता और टेनिस खेलता लेकिन मैं उसके स्केट्स और टेनिस रैकेट को तोड़ देता। वह रोता और वह हमारे सेक्टर 11 के घर को जेल कहता। वह मुझे ड्रैगन सिंह कहेता था। लेकिन फिर एक पिता के रूप में मुझे अधिकार है कि मैं अपने बेटे को अपना सम्मान वापस पाने और मुझे फिर से गर्व के साथ चलने के लिए कहूं।
युवराज सिंह तब छह साल के थे जब मैं उन्हे सेक्टर 16 स्टेडियम ले जाया करता था, जहां मैं उन्हे ट्रेनिंग देता था। वहा एक पेस अकादमी थी और मैं युवराज से बिना हेल्मट के अभ्यास करने को कहता था।
वह रोजाना स्टेडियम में डेढ़ घंटे से ज्यादा दौड़ता था। मुझे याद है कि एक बार मेरी मां की मृत्यु हो गई थी और उन्होंने मुझे बताया था कि मैं युवराज का जीवन ऐसे ही कठिन प्रशिक्षण से बिगाड़ रहा हूं। केवल यही समय था जब मुझे अपने बेटे पर कठोर होने का पछतावा हुआ।
युवी को क्रिकेट से नफरत थी और मैंने उन्हें क्रिकेट से प्यार करवाया, जो अब उनका जीवन है। उसको क्रिकेट का नशा हो गया और अब पूरी दुनिया को पता है कि उसने क्या हासिल किया है।
मुझे याद है कि युवराज ने U-19 के राष्ट्रीय टूर्नामेंट में पंजाब के खिलाफ रेस्ट ऑफ इंडिया के लिए 180 मैच खेले थे और राज सिंह डूंगरपुर हैदराबाद के साथ मैच देख रहे थे। उस समय युवी 16 साल के थे और डूंगरपुर ने कहा कि यह लड़का भारतीय टीम में होना चाहिए। मैंने उससे कहा, सर मुझे दो साल और दीजिए। और युवी ने साबित किया कि केन्या के खिलाफ 2000 में उन्होने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखा।
अगर खो-खो खेलते हुए उसे घुटने की चोट नही लगती, तो जब ग्रेग चैपल कोच थे, वह सभी एकदिवसीय और टी 20 रिकॉर्ड तोड़ सकते थे। (चैपल युग के दौरान भारतीय टीम ने नेट सत्रों से पहले वार्म-अप के लिए स्वदेशी खेल खेला)। मैं इसके लिए चैपल को माफ नहीं कर सकता।