केंद्र ने गुरुवार को जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी संगठन जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। इन पर कथित रुप से राष्ट्र विरोधी और विध्वंस्कारी गतिविधियों के लिए गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम-1967 के तहत बैन लगाया गया है। केंद्र का दावा है कि इस संगठन के आतंकवादियों से संबंध होने के सबूत मिले हैं।
यह प्रतिबंध 5 सालों के लिए वैध होगा। बीते दिनों घाटी में हुर्रियत नेताओं के घर हुई छापेमारी के बाद कुछ संदिग्ध चीजें बरामद हुई थी। जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख अब्दुल हामिद फयाज के अलावा तमाम अलगाववादी की गिरफ्तारी भी की गई थी। अधिक जांच के लिए जम्मू-कश्मीर पुलिस ने केंद्रीय जांच विभाग को भी तलब किया है।
सूत्रों के मुताबिक गैर तरीके से नेताओं की गिरफ्तार की गई थी और बाद में जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा पर एक उच्चस्तरीय बैठक के बाद गृह मंत्रालय द्वारा इस बैन की अधिसूचना जारी की गई है।
बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब जमात-ए-इस्लामी को पाकिस्तानी संबंधों में पकड़ा गया है। इससे पहले सन् 1975 में आपातकाल के समय भी कुछ नेताओं की गिरफ्तारी हुई थी। साथ ही संगठन पर बैन भी लगा दिया था। इसके बाद साल 1990 में वी.पी. सिंह सरकार के इन पर रोक लगाया था। बाद में 1993 में पी.वी.नरसिंभा राव की सरकार के समय भी ऐसा हुआ था।
22 फरवरी को गिरफ्तार हुए थे अलगाववादी नेता
घाटी में 22 फरवरी को हुई एक बड़ी कार्रवाई के दौरान पुलिस ने जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट और जमात-ए-इस्लामी के 130 से अधिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया था। 22 फरवरी की रात दक्षिण, मध्य और उत्तरी कश्मीर के इलाकों में यह छापेमारी की गई थी, जिसमें जमात संगठन के प्रमुख अब्दुल हामिद फयाज सहित दर्जनों नेताओं को हिरासत में लिया गया। इस कार्रवाई के बाद महबूबा मुफ्ती ने जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की निंदा की थी। इसके अलावा पूर्व राज्यमंत्री सज्जाद लोन ने इस कार्रवाई पर सवालिया निशान लगाए थे।