संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद् में जांचकर्ता ने बताया कि बांग्लादेश 23000 रोहिंग्या शरणार्थियों को अप्रैल में एक द्वीप में विस्थापित करने पर विचार कर रहा है। वह स्थान निवास योग्य नहीं है और एक नया संकट उत्पन्न हो सकता है। बांग्लादेश ने कहा कि “वह कॉक्स बाजार में भारी भीड़ को कम करने के लिए शरणार्थियों को भासन चार द्वीप पर भेज रहा है।” कॉक्स बाजार में 730000 शरणार्थी मौजूद है।
कई मानवधिकार समूहों ने विस्थापन योजना की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि उस द्वीप में चक्रवात आता रहता है और वह हज़ारों लोगों के निवास के लिए उचित स्थान नहीं है। यूएन के म्यांमार में विशेष दूत यांगही ली ने बताया कि “द्वीप पर यात्रा के बाजवाद कई पहलुओं से मैं वाकिफ नहीं हो पाया हूँ। यह विस्थापन की तीसरी योजना है और यह विस्थापन बिना शरणार्थियों की चिंताओं को समझकर किया जा रहा है। इसमें एक एक नए संकट को उत्पन्न करने की क्षमता दिखती है।”
यूएन में उन्होंने कहा कि “अब यह बांग्लादेश सरकार पर निर्भर करता है कि वह इस स्थिति को न उत्पन्न देने को सुनिश्चित करें।” इस पर बांग्लादेश की सरकार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
यूएन के विशेष राजदूत ने जिनेवा मंच पर कहा कि “नवंबर से रखाइन प्रान्त से 10000 नागरिकों के घर छोड़कर भागने की रिपोर्ट आयी है। इसकी वजह हिंसा और मानवीय सहायता की कमी थी। उन्हों यूएन से इस मामले को अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक अदालत में रेफर करने की दरख्वास्त की है।”
यूएन में म्यांमार के राजदूत क्याव मोए तुन ने इन आरोपों को खारिज किया। उन्होंने कहा कि “सरकार आईसीजे की कानूनी प्रक्रिया को स्वीकार नहीं कर सकती है। रखाइन राज्य में मानव अधिकार उल्लंघन के सबूत मिलने पर म्यांमार उत्तरदायित्व लेने के लिए प्रतिबद्ध है।”