भारत द्वारा जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद पाकिस्तान ने नई दिल्ली के खिलाफ कार्रवाई को बढ़ा दिया है और भारत के आन्तरिक मामले को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिशो में जुटा हुआ है। भारत के कदम ने इस्लामाबाद को चित कर दिया था और इसके बाद पाक ने विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को चीन भेका था ताकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् से मदद ली जा सके।
भारत के खिलाफ पाकिस्तान ने सभी दूतावासों से आल आउट अभियान की शुरुआत की थी और मदद के लिए हर दरवाजे पर दस्तक दी थी। चुनावो के दौरान इमरान खान ने पाकिस्तान के आर्थिक हालातो को सुधारने का वादा किया था जो दिखता नजर नहीं आ रहा है और भाजपा व नरेंद्र मोदी के खिलाफ जुबानी हमलो की शुरुआत की थी।
यूएनएससी की बैठक के बाद चीन और पाक अलग थलग पड़े थे क्योंकि सभी राष्ट्रों ने इस दखल देने से इंकार दिया था। अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी पाकिस्तान को मीडिया को गंभीरता से नहीं लिया था। इस्लामाबाद जम्मू कश्मीर में मानव अधिकारों के उल्लंघन को उछालता है जबकि बलूचिस्तान में मानव अधिकारों के खस्ताहाल होने की पुष्टि खुद अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने की है।
अफगानिस्तान और भारत में आतंकवाद का प्रायोजक भी इस्लामाबाद ही है यह किसी से छिपा नहीं है हाल ही ने पाकिस्तान में आतंकवादियों की मौजूदगी को इमरान खान ने खुद स्वीकार किया है। पत्रकार सदानंद धूमे ने एक आर्टिकल में लिखा कि पाकिस्तान की सेना में पत्रकारों, विपक्षी नेताओं और संजातीय आन्दोलनों को साथ रुखा रवैया पेश किया है, यह पाकिस्तान को यह बोलने की अनुमति नहीं देता है कि कश्मीर पाकिस्तान में बेहतर होगा।
पड़ोसी मुल्कों में अशांति और तनाव बढाने की पाकिस्तान की पुरानी नीति है विशेषकर भारत और अफगानिस्तान में वह आतंकवादियों का समर्थन करता है। ऐसा ही कुछ बयां न्यूयोर्क टाइम्स के पत्रकार मारिया अबिओ हबीब ने दिया है। भारत के निर्णय पर पाक का पांच में से चार सदस्यों ने समर्थन नहीं दिया था। अमेरिकी यात्रा से भी इमरान खान को मदद हाथ नहीं लगी थी।
कश्मीर पर भारत को खुलकर समर्थन करने वाला रूस यूएनएससी का पहला सदस्य बन गया है। उन्होंने कहा कि आर्टिकल 370 को हटाना भारत का आंतरिक मामला है और यह संवैधानिक ढांचे के भीतर है। मारिया ने लिखा कि “पाक ने जब सितम्बर 2011 में आतंकवादियों के खिलाफ अमेरिका की मदद को हाँ कहा था तब इसके बदले वांशिगटन से मदद मांगी थी कि वह कश्मीर पर मध्यस्थता करेगा और भारत पर रियायत के लिए दबाव बनाएगा। जब अमेरिका ने इनकार कर दिया तो पाकिस्तान बिफर गया था।”
उन्होंने कहा कि “खान की पाक यात्रा के दौरान ट्रम्प ने इमरान से कश्मीर पर मध्यस्थता का वादा किया था लेकिन भारत की तत्काल कार्रवाई के कारण पाकिस्तान अलग थलग पड़ गया था। बुरा तो यह हुआ कि पाकिस्तान मुस्लिम दुनिया को भी अपने पक्ष में करने में सफल नहीं हुआ। मालदीव और यूएई ने कहा कि कश्मीर भारत का आन्तरिक मामला है और हम इस मुददे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं उठाएंगे।