भारत के पड़ोसी देश म्यांमार (Myanmar) में राजनीतिक उठापटक जारी है और वहां जल्द ही कोई बड़ी राजनीतिक घटना हो सकती है। वहां की सियासत अस्थिर है और वहां के राष्ट्रपति है को हिरासत में लिया जा चुका है। वहां सैन्य तख्तापलट हो चुका है। सत्ताधारी पार्टी के प्रमुख आंग सान सू की को भी सेना ने हिरासत में लिया हुआ है। वहां संचार की सभी सेवाएं बंद है। इंटरनेट और कॉलिंग सेवा की भी बंद होने की खबर आ रही है। यहां राजनीतिक हलचल पिछले कुछ दिनों से ही देखी जा रही थी और अब अचानक से वहां के राष्ट्रपति को भी गिरफ्तार किया जाना किसी बड़े राजनीतिक घमासान की ओर संकेत कर रहा है।
साथ ही सत्तारुढ़ पार्टी के बहुत से कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है। भारत के लिए यह घटना काफी अहम हो सकती है। म्यांमार भारत का पड़ोसी देश है और म्यांमार में लोकतंत्र अभी अपनी जुड़े जमाने में कुछ खास सफल नहीं हुआ है। ऐसे में भारत का पड़ोसी देश, जो कि भारत के सुरक्षा मुद्दों में काफी अहम स्थान रखता है और साथ ही विदेश नीतियों में भी अहम देश के रूप में सामने होता है, उसके अंदर ऐसी सियासी उठापटक का होना भारत की राजनीति और विदेश नीति को प्रभावित करेगा।
म्यांमार में यह संघर्ष होने का कारण यह बताया जा रहा है कि म्यांमार में कुछ समय पहले तक सेना का शासन हुआ करता था और लगभग 50 साल तक शासन जारी रहा। अब म्यांमार में जब लोकतंत्र आया है तो इसे अभी अपनी जड़ें जमाने में कुछ वक्त लगेगा। म्यांमार में कुछ समय पहले जो चुनाव हुए उनमें जो पार्टी जीती है उसकी जीत को संदेहास्पद बताया गया है। इस पार्टी कि आज संसद में पहली बैठक होने वाली थी और इसी बीच जीती हुई पार्टी के बहुत से दिग्गज नेताओं को हिरासत में ले लिया गया।
वही टीवी, रेडियो इंटरनेट आदि के माध्यम से सरकारी कार्यक्रमों के प्रसारण को भी रोक दिया गया है और इसकी वजह जनता को तकनीकी खराबी आ बताई जा रही है। हालांकि ऐसा लग नहीं रहा कि है तकनीकी खराबी के कारण यह हुआ है बल्कि जानबूझकर की गई लगाई गई रोक का यह परिणाम यह लग रहा है। सेना के प्रवक्ताओं ने संचार बंदी और गिरफ्तारी पर कोई भी बयान देने से इनकार कर दिया है।
म्यांमार की सेना ने 1 साल तक के लिए सत्ता को अपने हाथ में ले लिया है यानी वहां सैन्य तख्तापलट हो चुका है। आंग सान सू की और वहां के राष्ट्रपति हिरासत में लिए जा चुके हैं। आज वहां जो पहला संसद सत्र होने वाला था उससे पहले ही यह तख्तापलट हो गया है और कई अहम मंत्रियों के पदों को भी सैन्य नियुक्ति के लिए आरक्षित कर लिया गया है। सत्तारुढ़ पार्टी पर चुनावों में धांधली के आरोप लगाने के चलते उन्हें राजनीति से बेदखल किया जा चुका है। वहां के कमांडर इन चीफ ने वरिष्ठ अधिकारियों से कहा है कि यदि कानूनों को सही तरीके से लागू नहीं किया जाता है तो वह संविधान को रद्द कर सकते हैं।