म्यांमार के सेनाध्यक्ष ने रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय का व्यवस्थित उत्पीड़न के आरोपों को खारिज किया और कहा कि ऐसे इल्जाम देश के सम्मान की बेइज्जती है। सेना प्रमुख अभी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की आलोचनाएं झेल रहे हैं।
म्यांमार मीडिया के मुताबिक रोहिंग्या समुदाय के उत्पीड़न के बाद अपने पहले इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि “बिना किसी सबूत के आरोप राष्ट्र के गौरव को आहत करते हैं।”
म्यांमार सेनाध्यक्ष का बयान
म्यांमार ने रोहिंग्या समुदाय के साथ उत्पीड़न, बलात्कार, हत्याओं और अन्य आरोपों को नाकारा है। सेनाध्यक्ष मीन औंग हलाईंग ने बताया कि “मुमकिन है कि कुछ सैनिक इस बर्बर कृत्य में शामिल हो।” मुस्लिम समुदाय का किसी अन्य देश में भागने के मकसद के बाबत उन्होंने कहा कि “यह सोचना संभव है कि आखिरकार वह क्योंकि भगाये, शायद अपने रिश्तेदारों के साथ रहने या किसी तीसरे मुल्क में जाने के लिए ऐसा किया हो।”
उन्होंने कहा कि “सभी एक जैसी बात कह रहे हैं, मेरे ख्याल से किसी ने उन्हें यह कहने के लिए कहा होगा।” सेनाध्यक्ष ने इंटरव्यू में कहा कि “उनके कृत्य पर अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक अदालत द्वारा जारी आदेश को वह सिरे से खारिज कर देंगे।हम ऐसे किसी भी निर्देश को नहीं मानेंगे जो म्यांमार की सम्प्रभुता के लिए खतरा बनकर उभरे।”
बौद्ध बहुल देश म्यांमार
बौद्ध बहुल देश में बौद्धों और रोहिंग्या मुस्लिमों के मध्य झड़प की खबरे आती रहती है। साल 2017 में म्यांमार की सेना द्वारा रक्तपात नरसंहार के कारण लाखों रोहिंग्या शरणार्थियों को दूसरे देशों में पनाह लेनी पड़ी थी। साल 1948 में ब्रिटेन की हुकूमत से म्यांमार की आज़ादी का ऐलान किया गया था, लेकिन देश इसके बाद से ही संजातीय विवादों की स्थिति से जूझ रहा है।
यूएन जांचकर्ताओं ने म्यांमार में नरसंहार के लिए कट्टर राष्ट्रवादी बौद्ध संत और सेना को जिम्मेदार ठहराया था। नेता अंग सान सु की की सरकार ने सेना के साथ सत्ता साझा करने के समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। रोहिंग्या मुस्लिमों पर अत्याचार के खिलाफ चुप्पी साधने के कारण उनकी काफी आलोचनायें हुई थी।