केंद्र सरकार ने म्यांमार से भागकर आये रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने की कवायद शुरू कर दी है। इस संवेदनशील मसले पर शीर्ष अदालत ने दखल देने से इनकार कर दिया था। दिल्ली के कालिंदी कुंज इलाके में 235 रोहिंग्या शरणार्थी कैम्पों में रह रहे हैं जिनको डर है कि उन्हें भी म्यांम्मार वापस भेज दिया जाएगा।
रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय के शरणार्थियों ने कहा कि म्यांम्मार में बिना शांति के स्थापना के बगैर वे वहां वापस नहीं जाएंगे।
एक रोहिंग्या शरणार्थी मुहम्मद फ़ारूक़ ने कहा कि हम यह साल 2012 से रह रहे हैं। हम सरकार से दरख्वास्त करना चाहते हैं कि हमें यहाँ रहने दे। हमने अपने देश मे बहुत जुल्म सहा है और हमने अपने देश किसी लालच की वजह से नहीं छोड़ा। कोई भी अपना राष्ट्र बेमतलब नहीं छोड़ देता। उन्होंने कहा म्यांम्मार भेजे गए शरणार्थियों को जल्द ही मार दिया जाएगा।
एक अन्य शरणार्थी ने बताया कि हम साल 2005 से यह कैम्प में रह रहे हैं और सरकार ने वीज़ा के अलावा हमें कोई सुविधा मुहैया नहीं करवाई है।
यूएन और दक्षिणपंथी समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत के इस कदम की आलोचना की है। यूएन रिफ्यूजी एजेंसी ने कहा कि भारत कानूनी प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न कर रहा है जिससे ये साबित हो सकता था कि रोहिंग्या समुदाय के दावे सही है या नहीं। वहीं एमनेस्टी ने कहा कि भारत रोहिंग्या शरणार्थियों के खिलाफ अभियान चला रहा है।
साल 2017 में हुए नरसंहार में 650000 रोहिंग्या मुस्लिमों ने म्यांम्मार छोड़कर अन्य देशों में पनाह ली थी। इस वक़्त सबसे अधिक रोहिंग्या मुस्लिमों ने बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में शरण ले रखी है।
म्यांम्मार की आर्मी के मुताबिक वे अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी के खिलाफ अभियान चला रही थी। इस चरमपंथी समूह ने म्यांम्मार की सेना के कैम्प में हमला किया था।
यूरोपियन संघ ने म्यांम्मार पर व्यापार प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है।