म्यांमार में रखाइन प्रान्त में रोहिंग्या मुस्लिमों हुए दमन की जांच एक मेजर जनरल और दो कर्नल रैंक के पदाधिकारी करेंगे। इस खबर को वरिष्ठ जनरल मीन औंग हलाईंग ने वेबसाइट पर पोस्ट की है।
रायटर्स के मुताबिक सेना ने कहा कि “जांच अदालत का गठन किया जा चुका है ताकि सम्बंधित व्यक्ति इसकी अधिक जांच कर सके और घटनाक्रम की पुष्टि कर सके।”
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र, दक्षिण पंथी समूहों ने म्यांमार की सेना पर नरसंहार, बलात्कार और आगजनी के आरोप लगाए थे।साऊथईस्ट एशिया एंड पैसिफिक डायरेक्टर ऑफ़ एमनेस्टी इंटरनेशनल के निकोलस बैक्वेलिन ने कहा कि “नयी अदालत का गठन बदनीयत पैंतरेबाज़ी है ताकि अंतर्राष्ट्रीय दबाव को कम किया जा सके।”
उन्होंने कहा कि सेना पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत संगीन आरोप लगे हैं लेकिन सुधार की कोई निशानी नहीं दिख रही है। खुद की जांच करने का विचार और फिर न्याय और उत्तरदायित्वता को सुनिश्चित करना, यह खतरनाक और भ्रमजनक हैं।”
सैन्य अदालत के गठन मिलिट्री द्वारा नियुक्त जज एडवोकेट-जनरल के सुझावों और मूल्यांकन के आधारित है। म्यांमार रखाइन में अत्याचार के लिए अंतर्राष्ट्रीय दबाव झेल रहा है।
हाल ही में म्यांमार की नेता ने कहा कि “अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान उत्तरी रखाइन में उपजे नकारात्मक तथ्यों पर हैं, जबकि एक तस्वीर इस राज्य में शान्ति और विकास की अत्यधिक क्षमता को दर्शाती है। रखाइन की गंभीर चुनौतियों की उनकी सरकार ने पहचान लिया है और उसका व्याख्यान करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ कर रही है।”
आंग सान सू की ने म्यांमार में अधिक निवेश करने का आग्रह किया है क्योंकि उनकी सरकार पर्यटन और निवेश की कमी को वापस लाने का प्प्रयास कर रही है। म्यांमार ने कहा कि “वह जनवरी से शरणार्थियों को वापस लेने के लिए राज़ी है और उन्होंने मुस्लिमों पर अत्याचार के आरोपों को खारिज किया है।”
साल 2017 में म्यांमार की सेना द्वारा रक्तपात नरसंहार के कारण लाखों रोहिंग्या शरणार्थियों को दूसरे देशों में पनाह लेनी पड़ी थी। साल 1948 में ब्रिटेन की हुकूमत से म्यांमार की आज़ादी का ऐलान किया गया था, लेकिन देश इसके बाद से ही संजातीय विवादों की स्थिति से जूझ रहा है।
यूएन जांचकर्ताओं ने म्यांमार में नरसंहार के लिए कट्टर राष्ट्रवादी बौद्ध संत और सेना को जिम्मेदार ठहराया था। नेता अंग सान सु की की सरकार ने सेना के साथ सत्ता साझा करने के समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। रोहिंग्या मुस्लिमों पर अत्याचार के खिलाफ चुप्पी साधने के कारण उनकी काफी आलोचनायें हुई थी।