नई दिल्ली, 26 मई (आईएएनएस)| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अपनी दूसरी पारी की शुरुआत करेंगे तो उनके सामने चार प्रमुख आर्थिक मसले होंगे, जबकि देश में आर्थिक सुस्ती, उपभोग और निवेश में कमी की स्थिति बनी हुई है।
नई सरकार के सामने सकल केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय से जारी होने वाले सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), महालेखा नियंत्रक द्वारा जारी राजकोषीय घाटा के आंकड़े, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अधिशेष को लेकर जालान समिति की रिपोर्ट और एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) के संबंध में आरबीआई का सर्कुलर, ये चार प्रमुख मसले होंगे।
सूत्रों ने बताया कि गंभीर सुस्ती के दौर से गुजर रही भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में 6.3 फीसदी रहने की उम्मीद की जा रही है, जोकि पिछली छह तिमाहियों में सबसे कम होगी।
सीएसओ की ओर से बीते वित्त वर्ष की चौथी तिमाही समेत पूरे वित्त वर्ष के जीडीपी के आंकड़े इसी सप्ताह आने वाले हैं।
सूत्रों ने बताया कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती वित्त वर्ष 2020 में भी बनी रह सकती है और चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इसका अनुभव तत्काल होगा।
वित्त वर्ष 2019 की दूसरी तिमाही से जीडीपी विकास दर लगातार घटती जा रही है। वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में जीडीपी विकास दर आठ फीसदी थी जो दूसरी तिमाही में घटकर सात फीसदी और तीसरी में 6.6 फीसदी पर आ गई।
वित्त वर्ष 2018-19 में सरकार ने राजकोषीय घाटा 3.4 फीसदी रखने का लक्ष्य रखा था जिसे बाद में संशोधित कर 3.3 फीसदी कर दिया गया। फरवरी के अंत में राजकोषीय घाटा बढ़कर 8,51,499 करोड़ रुपये हो गया जोकि बजटीय अनुमान को पार करने के साथ-साथ जीडीपी का 4.52 फीसदी हो गया। सीजीए द्वारा वित्त वर्ष 2019 के राजकोषीय घाटे के आंकड़े अभी आने हैं।
साथ ही, सरकार बनने के बाद आरबीआई का संशोधित सर्कुलर आने की उम्मीद है। उम्मीद की जा रही है कि आरबीआई दबाव वाली संपत्तियों के समाधान की दिशा में समायोजी दृष्टिकोण अपनाएगा।