Sun. Nov 17th, 2024
    मैरी कॉम

    भारत के स्टार बॉक्सर मैरीकॉम ने कहा कि किसी नई युवा खिलाड़ी के पास कोई इतनी खास कला नहीं होती जब वह अपना पहला विश्व बॉक्सिंग खिताब खेला रही होती हैं ऐसा ही मेरे साथ भी था, लेकिन उनका कहना हैं अब वह एक ऐसे मुकाम पर पहुंच गई हैं जहा पर वह बिना दबाब के खेल सकती है और बिना पंच मारे जीत हासिल कर सकती हैं।

    36 साल की मैरीकॉम के तीन बच्चे हैं और उन्होनें हाल ही में अपने नाम 10वें आईबा विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड पदक किया हैं। यह उनका सातवां विश्व चैंपियनशिप मेडल हैं, जो कि उनको एक कामयाब बॉक्सर के रुप में दर्शाता हैं।

    पीटीआई को दिए इंटरब्यू में मणिपुर की बॉक्सर ने अपना ध्यान केंद्रित करते हुए विश्व चैंपियनशिप सफर को 2001 से याद किया, जहा उन्होने यूएसए में मैरी ने अपने नाम पहला सिल्वर मेडल जीता था, और वह शनिवार को बॉक्सिंग टूर्नामेंट जीतने के बाद विश्व की सबसे सफल मुक्केबाज बन गई हैं, वह उस वक्त रो भी पड़ी थी।

    2001 “मैं युवां और अनुभवी खिलाड़ी नहीं थी, और ना ही मैरे में खेलने का कोई ढंग था। मैं बस अपनी ताकत और क्षमता पर भरोसा करती थी,  बस अपने ही सहजता पर खेलती थी। लेकिन 2018 में इस वक्त मेरे पास अनुभव हैं औऱ मुझे ज्यादा दबाब झेलने की जरुरत नहीं हैं, और मुझे बिना हिट के बाउट जीतना पसंद हैं, और मैं यह बहुत पहले से करती आ रही हूं।

    ऐसा नही हैं कि मैं अपने देश के लिए अपनी घरेलू मैदान में पहले गोल्ड नही लायी, मैंने इससे पहले भी 2006 में दिल्ली में ओयोजित बॉक्सिंग टूर्नामेंट में भी गोल्ड जीता हैं, लेकिन वह मेडल मैरे लिए आंसुओ से भरा नहीं था। इस साल हमारे देश के लोगों ने हमारा बहुत साथ दिया और मैरे फाइनल मुकाबले में लोग बस मेरा नाम जप रहे थे, जो कि मुझे बहुत अच्छा लगा और मैं भावुक होकर रो पड़ी।

    मैरीकॉम ने कहा यह मेरा छह गोल्ड मेडलो में से सबसे पसंदीदा खिताब हैं क्योंकि यह टूर्नामेंट बहुत कठिन था और पूरे देश को मुझसे बहुत आशा थी।

    By अंकुर पटवाल

    अंकुर पटवाल ने पत्राकारिता की पढ़ाई की है और मीडिया में डिग्री ली है। अंकुर इससे पहले इंडिया वॉइस के लिए लेखक के तौर पर काम करते थे, और अब इंडियन वॉयर के लिए खेल के संबंध में लिखते है

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *