बांदा, 22 मई (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश में बांदा जिले की प्रमुख जीवन दायिनी नदी ‘केन’ को बचाने के लिए किसानों के आंदोलन के बाद अब सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार और बुद्धजीवी आगे आए हैं। सोशल मीडिया पर ‘मैं भी भगीरथ’ मुहिम शुरू कर केन नदी के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाई जा रही है।
फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर के अलावा चौपाल के जरिए ‘मैं भी भगीरथ’ मुहिम शुरू करने वाले एक न्यूज चैनल के स्थानीय पत्रकार अजय सिंह चौहान ने बुधवार को कहा, “केन नदी बांदा जिला ही नहीं, बुंदेलखंड की एक प्रमुख नदी है। बालू माफियाओं के अवैध खनन से नदी की दशा और दिशा बदल गई है। यह वही नदी है, जिसके पानी से जिला मुख्यालय के अलावा करीब 50 गांवों के किसान अपनी प्यास बुझाते थे, लेकिन आज खुद नदी प्यासी एक-एक बूंद पानी को तरस रही है।”
उन्होंने कहा, “एक भगीरथ ने मां गंगा को धरती पर उतार कर जनकल्याण किया था। मां केन को बचाने की जिम्मेदारी जिले के 19 लाख भगीरथों की है। अगर समय से नहीं चेते तो आगे आने वाली पीढ़ी केन नदी को सिर्फ किताबों में पढ़ेगी।”
बुंदेलखंड किसान यूनियन के अध्यक्ष विमल शर्मा ने बुधवार को कई सामाजिक संगठनों की संयुक्त बैठक में पिछले छह दिनों तक चले किसान आंदोलन की तस्वीर पेश की और कहा, “जिले में तैनात एक जिम्मेदार अधिकारी के तमाम विघ्न डालने के बाद भी किसानों का आंदोलन सफल रहा। किसान अपनी कूबत भर लड़ाई लड़ कर जंग का ऐलान कर चुके हैं। अब इस केन नदी को बचाने की जिम्मेदारी पत्रकारों और बुद्धजीवियों के कंधों में आ गई है। यदि केन नदी को नहीं बचाया गया तो इसके दुष्परिणाम बड़े भयंकर होंगे।”
बुंदेलखंड आजाद सेना के प्रमुख प्रमोद आजाद ने कहा, “केन नदी बुंदेलों की मां है। इसे अपनी जान भी देकर बचाएंगे।”
बुंदेलखंड इंसाफ सेना के अध्यक्ष ए. एस. नोमानी ने आरोप लगाया, “बालू माफिया प्रशासन की मिलीभगत से केन नदी में अवैध खनन कर रहे हैं और प्रशासन पानी के संकट का खुद जिम्मेदार है। ‘मैं भी भगीरथ’ मुहिम को गांव-गरीब की आवाज बनाया जाएगा और केन व उसकी अन्य सहायक नदियों को बचाने के लिए हरसंभव कोशिश की जाएगी।”
‘मैं भी भगीरथ’ की बुधवार की बैठक में 33 सामाजिक संगठनों के शीर्ष पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया।