मिजोरम 10 लाख की आबादी वाला एक छोटा सा पहाड़ी राज्य है लेकिन यहाँ के राजनितिक समीकरण यहाँ के घुमावदार पहाड़ी सड़कों की तरह हैं। सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी एमएनएफ अपने को भाजपा विरोधी साबित करने की जी तोड़ कोशिश कर रही है।
इस क्रिस्चन बहुल राज्य की 40 विधानसभा सीटों के लिए 28 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। भाजपा ने कभी यहाँ एक भी विधानसभा सीट नहीं जीती लेकिन अब अचानक यहाँ की राजनीति में भाजपा का महत्त्व बढ़ गया है।
भाजपा अब कांग्रेस के साथ-साथ मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) पर जमकर हमले कर रही है क्योंकि दोनों पार्टियों ने यहाँ बारी बारी से शासन किया है। जैसे-जैसे चुनाव के दिन नजदीक आ रहे हैं कांग्रेस और एमएनएफ दोनों अतीत से पुरानी तस्वीरों, दस्तावेजों और बैठक के विवरण खोदकर एक दूसरे से भाजपा के “असली सहयोगी” होने का आरोप लगा रहे हैं।
कांग्रेस और एमएनएफ भाजपा को “ईसाई विरोधी” के रूप में चित्रित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। म्यांमार और बांग्लादेश के बीच सैंडविच के जैसे बसे इस राज्य के रणनीतिक महत्वपूर्ण को देखते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इस उत्तर-पूर्वी राज्य में सत्ता पाने के लिए एक जोरदार अभियान शुरू किया है। अमित शाह ने घोषणा की कि इस दिसंबर में भाजपा शासन के अंतर्गत मिजोरम में क्रिसमस मनाया जाएगा।
भाजपा नेताओ के लिए मिजोरम पार्टी के कांग्रेस मुक्त पूर्वोत्तर अभियान का आखिरी राज्य है। इससे पहले भाजपा त्रिपुरा, असम, मणिपुर और अनुचाला प्रदेश में सत्ता हासिल कर चुकी है जबकि मेघालय और नागालैंड में सातधारी पार्टी की सहयोगी है।
कांग्रेस 2008 से मिजोरम में सत्ता में है और लगातार तीसरे कार्यकाल पर नजर जमा रखी है। इस वक़्त विधानसभा में कांग्रेस के 34 विधायक हैं, जबकि एमएनएफ में पांच और मिजोरम पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के एक विधायक है।
कांग्रेस ने 2008 में 32 सीटें जीती थी जबकि 2013 में उसके सीटों की संख्या बढ़कर 34 हो गई। भाजपा ने अब तक राज्य में अपना खाता नहीं खोला है लेकिन इस तरह से भाजपा आक्रामक चुनाव प्रचार कर रही है उससे उसने कांग्रेस और एमएनएफ दोनों की नींदें उड़ा रखी है। पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों में अपने पाँव जमा लेने के बाद भाजपा के लिए ये चुनाव आसान हो गया है।