कला से प्रेम करना उसके प्रति भावनात्मक होना अच्छा है लेकिन जब एक कलाकार अपनी कला को लेकर इतना पागल हो जाए कि उसके सामने नैतिकता-अनैतिकता सब भूल जाए तो इसे मानसिक विकृति ही कही जाएगी।
राजीव बरनवाल की फिल्म ‘मास्टरपीस’ ऐसे ही एक कलाकार की कहानी है जो अपनी कला के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। अभीक बैनर्जी जो कि एक पेंटर है, को एक कैफ़े में बानी भमराह दिखती है और वह इसे इतनी पसंद आती है कि वह कैफ़े में ही बैठ कर उसका स्केच बनाने लगता है और बानी यह बात नोटिस कर लेती है।
बानी को लगता है कि अभीक उसे स्टॉक कर रहा है लेकिन जब वह उससे बातचीत करती है तो उसे लगता है कि असल में तो वह एक प्यारा इंसान है।
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बानी भी पेशे से आर्टिस्ट है और वह थिएटर करती है इसलिए दोनों एक दूसरे से जुड़ पाते हैं और दोनों में प्यार हो जाता है। लेकिन यह कहानी इतनी खूबसूरत नहीं है जैसी इसकी शुरुआत है। ज़िन्दगी में हमेशा ऐसे मोड़ आते हैं जिनकी हमें उम्मीद भी नहीं होती है और कभी-कभी ये मोड़ काफी वहशतनाक भी होते हैं पर ऐसे ही किसी मोड़ पर एक कलाकार अपनी महान कलाकृति को जन्म दे सकता है।
अक्षय ओबेराय और सिमरत कौर स्टारर ‘मास्टरपीस’ एक साइकोथ्रिलर फिल्म है जिसके निर्देशक राजीव बरनवाल हैं। अभिनय की बात करें तो अक्षय ओबेराय, जाने-माने कलाकार हैं और उन्होंने दर्शकों को निराश भी नहीं किया है। अपने किरदार की हर परतों को उन्होंने खूबसूरती से परदे पर उकेरा है।
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उनके अपोजिट सिमरत कौर ने भी ठीक-ठाक अभिनय किया है। फिल्म के संगीत की बात करें तो यह काफी खूबसूरत है और फिल्म के कई दृश्यों में जान भरने की कोशिश करता है। फिल्म का गाना ‘यूँ न जाओ मुझे छोड़ के’ के बोल लिखे हैं आस्था जगियासी ने और इसके गायक हैं सुजीत शेट्टी।
फिल्म यहाँ देखें:
एक बात जो फिल्म देखने के दौरान खटकती है, वह यह है कि एक थ्रिलर फिल्म होने के नाते इसमें इस तरह के दृश्य कम और प्रेम और बाकी चीज़ों के दृश्य ज्यादा भरे गए हैं जो शायद अचानक से चौका देने के लिए किया गया है लेकिन अंतिम सीन के दौरान बैकग्राउंड में चल रहा गाना बिलकुल सूट नहीं करता है।
फिल्म दिलचस्प है लेकिन कुछ सीन खिंचे-खिंचे से लगते हैं। लेकिन अक्षय ओबेराय की क्यूटनेस के लिए यह फिल्म एक बार जरूर देखनी चाहिए।
रेटिंग- 2/5
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