मालदीव पर राजनीतिक संकट के बादल छंटने के बाद 17 नवम्बर को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने देश के सबसे उच्च पद की शपथ ली थी। मीडिया इस शपथ ग्रहण समारोह को चीन की हार और भारत की जीत के चश्मे से देख रहा है। मालदीव के भारत को प्राथमिकता देने के कारण चीन ने अपनी बौखलाहट मीडिया के जरिये बयान की है।
चीनी विश्लेषकों के मुताबिक मालदीव की भारत पहले की नीति उन्हें वापस नई दिल्ली पर आधारित देश बना देगी। हालांकि पीएम मोदी ने वादा किया है कि आगामी आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए भारत मालदीव की हर संभव मदद करेगा।
इब्राहीम सोलिह ने शनिवार को ऐलान किया था कि उनकी टीम चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना की समीक्षा करेगी। उन्होंने बताया कि चीन से विकास परियोजनाओं के लिए लिया गया कर्ज 1.5 बिलियन डॉलर का है, यह मालदीव की वार्षिक जीडीपी के एक-चौथाई से अधिक है।
संघाई एकेडेमी के रिसर्च फेलो हु ज्हियोंग ने बताया कि चीन और मालदीव के रिश्ते इस वक्त पेचीदा हो रखे हैं। उन्होंने कहा कि मालदीव के इस कदम से बीआरआई परियोजना प्रभावित होगी। उन्होंने कहा कि अगर भारत हिन्द महासागर में चीन के दबदबे को खतरा समझना नहीं रोकेगा तो इससे भारत और चीन के सम्बन्ध भी ख़राब होंगे।
हु ने कहा कि हिन्द महासागर में सामान सप्लाई करने के लिए मालदीव एक महत्वपूर्ण भाग है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति सोलिह की भारत से इतनी नजदीकी मालदीव को वापस नई दिल्ली के पीछे लाकर खड़ा कर देगी। मालदीव फिर से भारत पर आश्रित देश बन जायेगा। चीनी परियोजना के कसीदे पढ़ते हुए हु ने कहा कि मालदीव के कर्ज के लिए बीआरआई परियोजना के जिम्मेदार होने की खबरे गलत और अतार्किक हैं।
उन्होंने कहा कि चीन की इस परियोजना का आर्थिक और राजनीति से कोई लेना देना नहीं है बल्कि इसका मकसद राष्ट्रों में विकास और उन्हें गरीबी के स्तर से उभारना है। हालांकि विश्व बैंक और आईएमएफ की रिपोर्ट के मुताबिक चीन विकासशील देशों को कर्ज की जाल में फंसकर अपना उद्देश्य की पूर्ती कर रहा है।
चीन ने श्रीलंका और मलेशिया को कर्ज की जाल में फांसकर उनसे उनके बंदरगाह छीन लिए थे। श्रीलंका को बढ़ते कर्ज के कारण मजबूरन हाबंटोटा बंदरगाह 99 वर्ष की लीज पर चीन को देना पड़ा था।