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    नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर पूरे देश में मचे घमासान के बीच लखनऊ विश्वविद्यालय ने इस कानून को पाठ्यक्रम में शामिल करने के प्रस्ताव की बात कर नई बहस को जन्म दे दिया है। बसपा मुखिया मायावती ने इस कदम का विरोध करते हुए कहा कि प्रदेश में सत्ता में आने पर वह इसे पाठ्यक्रम से वापस ले लेंगी। लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभाग की ओर से सीएए को पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव हुआ है।

    राजनीति शास्त्र विभाग की अध्यक्ष शशि पांडेय ने कहा, “नागरिकता संशोधन कानून का रूप ले चुका है। इसकी जानकारी बच्चों को होना जरूरी है। जब यह पाठ्यक्रम शामिल होगा, तब जानकारी दी जाएगी। कश्मीर में अनुच्छेद-370 और सीएए जैसे हालिया कानूनी बदलाव हुए हैं, उस ²ष्टि से इसकी जानकारी आवश्यक है। हम भारतीय राजनीति के सारे समकालीन मुद्दों को पढ़ाते हैं। अभी यह पाठ्यक्रम नहीं आया है। जब यह सभी अकादमिक बॉडी से पास होगा, तब जानकारी दे दी जाएगी।”

    इस विषय पर लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रवक्ता दुर्गेश श्रीवास्तव ने कहा, “अभी विभाग की ओर से सिर्फ प्रस्ताव रखा गया है। किसी विषय को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने के पहले उसे बोर्ड मीटिंग व कार्यपरिषद से गुजरना पड़ता है। इसमें लंबा वक्त लगता है।”

    बसपा सुप्रीमो मायावती ने लखनऊ विश्वविद्यालय की इस कवायद का विरोध किया है। उन्होंने ट्वीट के माध्यम से लिखा, “सीएए पर बहस आदि तो ठीक है, लेकिन कोर्ट में इस पर सुनवाई जारी रहने के बावजूद लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा इस अतिविवादित व विभाजनकारी नागरिकता कानून को पाठ्यक्रम में शामिल करना पूरी तरह से गलत व अनुचित है। बसपा इसका सख्त विरोध करती है तथा यूपी में सत्ता में आने पर इसे अवश्य वापस ले लेगी।”

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