कांग्रेस ने आज कहा कि वह पहले से ही मध्य प्रदेश और राजस्थान में अप्रैल के विरोध के दौरान दलितों के खिलाफ दर्ज मामलों की समीक्षा कर रही है और मायावती की कल की टिप्पणी वास्तव में “चेतावनी” नहीं थी।
मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार को समर्थन करने वाली बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने कहा था कि जब तक कांग्रेस दो राज्यों में निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ दायर मामलों को वापस नहीं लेती, वह पार्टी के प्रति अपने समर्थन पर “पुनर्विचार” करेंगे।
कांग्रेस प्रवक्ता टॉम वडक्कन ने आज संवाददाताओं से कहा, “मायावती ने चेतावनी नहीं दी थी, उन्होंने दलितों के खिलाफ दर्ज मामलों के बारे में दबाव बनाने की जरूरत बताई।”
अनुसूचित जाति और जनजाति के खिलाफ अत्याचार की रोकथाम के लिए एक कानून में बदलाव के खिलाफ भारत बंद के दौरान कांग्रेस और मायावती एक साथ थे। दोनों पार्टियों ने भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार पर आरोप लगाया था कि वो दलित विरोधी है।
कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी ने ट्वीट किया था, “हमारे दलित भाई-बहन आज मोदी सरकार से अपने अधिकारों की रक्षा की मांग को लेकर सड़कों पर हैं। हम उन्हें सलाम करते हैं।”
“हम पहले से ही दलितों के खिलाफ दर्ज मामलों की समीक्षा कर रहे हैं। कानूनी प्रक्रिया में समय लगता है। लेकिन मामले को सुलझा लिया जाएगा,” श्री वडक्कन ने कहा।
दरअसल मायावती और अखिलेश यादव कांग्रेस के बिना उत्तर प्रदेश में महागठबंधन करने पर विचार कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस मायावती को नाराज करने का ओखिम नहीं उठा सकती। मध्य प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी पहले ही अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला कर चुकी है।
इससे पहले, एचडी कुमारस्वामी के जनता दल सेक्युलर के एक वरिष्ठ नेता, दानिश अली, जो कांग्रेस के सहयोगी हैं, ने भी अप्रैल के विरोध के लिए दलितों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “हम मायावती के रुख का समर्थन करते हैं। दलित समुदाय के युवा भाजपा शासित राज्यों में साजिश का शिकार हुए हैं।