शुक्रवार को नयी दिल्ली में बसपा सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच हुई मुलाक़ात के बाद ये तय हो गया कि एक वक़्त के कट्टर विरोधी अब भाजपा को पटखनी देने के लिए हाथ मिला चुके हैं।
सूत्रों की माने तो सबसे जयादा सांसद लोकसभा में भेजने वाले उत्तर प्रदेश में महागठबंधन की सूरत तय हो चुकी है और इस गठबंधन ने कांग्रेस के लिए 80 में से सिर्फ 2 सीटों की गुंजाइश छोड़ी गई है।
इस मुलाक़ात के बाद जो फ़ॉर्मूला छन छन कर बाहर आई वो ये थी कि बहुजन समाज पार्टी 36 सीटों पर, समाजवादी पार्टी 35 सीटों पर और राष्ट्रीय लोक दल 3 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है जबकि कांग्रेस के लिए सिर्फ अमेठी और रायबरेली की सीट छोड़ी गई है। बाकी 4 सीटें रिजर्व में रखी गई है ताकि कोई अन्य छोटे दल मसलन भाजपा से नाराज अपना दल और ओम प्रकाश राजभर की पार्टी भारत समाज पार्टी के लिए जगह बनायी जा सके।
मध्य प्रदेश और राजस्थान में बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया है और समाजवादी पार्टी ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस को समर्थन दिया है लेकिन दोनों ही नेताओं ने कमलनाथ के शपथ ग्रहण समारोह से दूरी बनाए रखी। कांग्रेस ने इस शपथ ग्रहण समारोह को विपक्षी एकता का मेगा शो बनाने की तैयारी की थी लेकिन माया और अखिलेश की अनुपस्थिति ने महागठबंधन पर सवाल खड़े कर दिए।
मध्य प्रदेश कैबिनेट में जगह न मिलाने पर अखिलेश ने भी नाराजगी जताते हुए कहा था कि “कांग्रेस ने हमारी दुविधा को दूर कर दिया और हमारे लिए रास्ता साफ़ कर दिया।” अखिलेश के इस बयान का ये मतलब निकाला गया कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अलग थलग करने की तैयारी शुरू हो चुकी है।
रणनीति ये है कि कांग्रेस को इतनी कम सीटें दी जाए कि वो खुद ही इस महागठबंधन से अलग हो जाए क्योंकि 3 राज्यों में मिली जीत से उत्साहित कांग्रेस 80 सीटों वाले राज्य में सिर्फ 2 सीट पर मान जाए ये असंभव है क्योंकि बिना गठबंधन के भी वो राय बरेली और अमेठी तो जीत ही सकती है।