भारत में दिन प्रतिदिन पशु पक्षियों की संख्या में कमी आती दिख रही है। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड ने लिविंग प्लेनेट नाम से एक रिपोर्ट जारी की थी।
विश्व को यह रिपोर्ट मानव जाति के कारण जानवरों की प्रजाति के भविष्य पर खतरे के संकेत दे रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक मनुष्य की साल 1970 से 2014 तक की गयी क्रियाओं के कारण 60 प्रतिशत बैकबोन (रीढ़ की हड्डी) वाले जंतु मर रहे हैं। जंतुओं की इस सूची में मैमल, पक्षी, मछलियाँ आदि है।
डब्लूडब्लूएफ के निदेशक सचिव मार्को लम्बेर्तिन्य ने कहा कि पर्यावरण के हालात बेहद ख़राब है और दिन प्रतिदिन हालात और ख़राब होते हो जा रहे हैं। लिवेंग प्लेनेट की रिपोर्ट को तथ्यों, आकड़ों और गहरे अध्य्यन के साथ तैयार किया गया है। विश्व के 4000 प्रकार की जंतु प्रजातियों पर अध्य्यन किया गया है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक मानव क्रियाओं का लैटिन अमेरिका पर सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इस इलाके में 44 साल के अंतराल में 90 प्रतिशत जंगली जीवन को तहस नहस किया है। साफ़ पानी में रहने वाले जंतु भी अधिक उम्र तक जीवित नहीं रह पायेंगे।
जारी रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि अधिकतर जन्तु जनजाति मानव प्रजाति के कारण विलुप्त हो रही है। सैकड़ों वर्षों पूर्व के मुकाबले आज मनुष्य के 100 से 1000 गुना अधिक आप्राकृतिक क्रियाओं के कारण जानवर प्रजाति की दुर्दशा हो रही है।
जमीन और जल में रहने वाले जीव- जंतुओं को मारकर मानव पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बिगाड़ रहा है। इसके भयानक परिणाम होंगे। मानव प्रजाति अपने विनाश की ओर अग्रसर है।
धरती पर निरंतर जलवायु परिवर्तन के कारण विनाशक आपदाएं आ रही है। मानव जाति प्रतिवर्ष 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान में वृद्धि पर नियंत्रित करता है शयद तब भी 70 से 90 प्रतिशत जीवों को सुरक्षित नहीं किया जा सकता है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि सभी देशों और मानवों को एक समस्या के समाधान के लिए एकजुट होना चाहिए। अगर ऐसा संभव न हो पाया तो मानव जाति जिंदगियों से परिपूर्ण इस गृह को नष्ट कर देगी।