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    माता काली को शक्ति की प्रतिमूर्ति कहा गया है। हिंदू धर्म में काली जी की पूजा दुष्टों का संहार करने वाली मां के रूप में होती है। ऐसा कहा जाता है कि मां काली की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर का भय समाप्त होता है। इनकी पूजा से भक्त रोग मुक्त होते हैं। ज्योतिष शास्त्र में भी मां काली की पूजा-अर्चना करने के लाभ बताए गए हैं। इसके अनुसार काला मां की आराधना से राहु और केतु का प्रकोप ठीक हो जाता है। साथ ही मां काली अपने भक्त के शत्रुओं का नाश करती हैं। माता काली की पूजा में उनकी आरती का विशेष महत्व है।

    काली जी की आरती:

    अम्बे तू है जगदम्बे काली,
    जय दुर्गे खप्पर वाली ।
    तेरे ही गुण गाये भारती,
    ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥

    तेरे भक्त जनो पर,
    भीर पडी है भारी माँ ।
    दानव दल पर टूट पडो,
    माँ करके सिंह सवारी ।
    सौ-सौ सिंहो से बलशाली,
    अष्ट भुजाओ वाली,
    दुष्टो को पलमे संहारती ।
    ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥

    माँ बेटे का है इस जग मे,
    बडा ही निर्मल नाता ।
    पूत – कपूत सुने है पर न,
    माता सुनी कुमाता ॥
    सब पे करूणा दरसाने वाली,
    अमृत बरसाने वाली,
    दुखियो के दुखडे निवारती ।
    ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥

    नही मांगते धन और दौलत,
    न चांदी न सोना माँ ।
    हम तो मांगे माँ तेरे मन मे,
    इक छोटा सा कोना ॥
    सबकी बिगडी बनाने वाली,
    लाज बचाने वाली,
    सतियो के सत को सवांरती ।
    ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥

    चरण शरण मे खडे तुम्हारी,
    ले पूजा की थाली ।
    वरद हस्त सर पर रख दो,
    मॉ सकंट हरने वाली ।
    मॉ भर दो भक्ति रस प्याली,
    अष्ट भुजाओ वाली,
    भक्तो के कारज तू ही सारती ।
    ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥

    काली जी की आरती – 2

    जय काली माता, माँ जय महा काली माँ।
    रतबीजा वध कारिणी माता।
    सुरनर मुनि ध्याता, माँ जय महा काली माँ॥

    दक्ष यज्ञ विदवंस करनी माँ शुभ निशूंभ हरलि।
    मधु और कैितभा नासिनी माता।
    महेशासुर मारदिनी, ओ माता जय महा काली माँ॥

    हे हीमा गिरिकी नंदिनी प्रकृति रचा इत्ठि।
    काल विनासिनी काली माता।
    सुरंजना सूख दात्री हे माता॥

    अननधम वस्तराँ दायनी माता आदि शक्ति अंबे।
    कनकाना कना निवासिनी माता।
    भगवती जगदंबे, ओ माता जय महा काली माँ॥

    दक्षिणा काली आध्या काली, काली नामा रूपा।
    तीनो लोक विचारिती माता धर्मा मोक्ष रूपा॥

    ॥ जय महा काली माँ ॥

    काली माँ की आरती – 3

    मंगल की सेवा सुन मेरी देवा, हाथ जोड तेरे द्वार खडे।
    पान सुपारी ध्वजा नारियल ले ज्वाला तेरी भेट धरे
    सुन जगदम्बे न कर विलम्बे, संतन के भडांर भरे।
    सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जै काली कल्याण करे ।। ( स० )
    बुद्धि विधाता तू जग माता, मेरा कारज सिद्व करे।
    चरण कमल का लिया आसरा शरण तुम्हारी आन पडे
    जब जब भीड पडी भक्तन पर, तब तब आप सहाय करे ।। ( स० )
    गुरु के वार सकल जग मोहयो, तरुणी रूप अनूप धरे
    माता होकर पुत्र खिलावे, कही भार्या भोग करे
    शुक्र सुखदाई सदा सहाई संत खडे जयकार करे ।। ( स० )
    ब्रह्मा विष्णु महेश फल लिये भेट तेरे द्वार खडे
    अटल सिहांसन बैठी मेरी माता, सिर सोने का छत्र फिरे
    वार शनिचर कुकम बरणो, जब लकड पर हुकुम करे ।। ( स० )
    खड्ग खप्पर त्रिशुल हाथ लिये, रक्त बीज को भस्म करे
    शुम्भ निशुम्भ को क्षण में मारे, महिषासुर को पकड दले ।।
    आदित वारी आदि भवानी, जन अपने को कष्ट हरे ।। ( स० )
    कुपित होकर दानव मारे, चण्डमुण्ड सब चूर करे
    जब तुम देखी दया रूप हो, पल में सकंट दूर करे
    सौम्य स्वभाव धरयो मेरी माता, जन की अर्ज कबूल करे ।। ( स० )
    सात बार की महिमा बरनी, सब गुण कौन बखान करे
    सिंह पीठ पर चढी भवानी, अटल भवन में राज्य करे
    दर्शन पावे मंगल गावे, सिद्ध साधक तेरी भेट धरे ।। ( स० )
    ब्रह्मा वेद पढे तेरे द्वारे, शिव शंकर हरी ध्यान धरे
    इन्द्र कृष्ण तेरी करे आरती, चॅवर कुबेर डुलाय रहे
    जय जननी जय मातु भवानी, अटल भवन में राज्य करे ।। ( स० )
    सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, मैया जै काली कल्याण करे ।।

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    By विकास सिंह

    विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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