सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को रेप व छेड़छाड़ जैसे मामलों को जेंडर मुक्त करने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में कहा गया था कि रेप व छेड़छाड़ के मामलों में अगर महिला दोषी होती है तो उसको भी पुरूष के समान ही आरोपी माना जाना चाहिए। याचिका में कहा गया है कि यौन अपराध को लिंग के आधार पर तय नहीं किया जाना चाहिए। यह पुरुषों के मूल अधिकारों का हनन है।
याचिकाकर्ता वकील ऋषि मल्होत्रा ने याचिका में मांग की थी रेप व छेड़छाड़ के केस में पुरूष भी पीड़ित हो सकते है। ऐसे कई मामले सामने आए है जिनमें महिलाओं ने पुरूषों के साथ इस तरह के अपराध किए है। लेकिन हर बार महिला को ही पीड़ित माना जाता है। इसलिए इन मामलों में महिला को भी पुरूष की तरह ही अपराधी माना जाना चाहिए।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा-375 यानी रेप और 354 यानी छेड़छाड़ की धाराएं महिलाओं को सुरक्षित करने के लिए बनाई गई है। अगर पुरुषों के साथ ऐसा होता है तो उसके लिए आईपीसी में अलग प्रावधान है। इन धाराओं में महिलाओं को पीडित माना गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद चाहे तो आवश्यकता के अनुसार धारा में बदलाव कर सकती है।
संसद चाहे तो कर सकती है संशोधन
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर कहा कि अगर संसद को लगता है कि इस मुद्दे पर अलग से ध्यान देने की जरूरत है तो वे इसमें संशोधन कर सकता है। यह संसद पर ही निर्भर है। हम संविधान में संशोधन के लिए संसद को निर्देश नहीं दे सकते है। इस याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और डीवाय चंद्रचुड ने की।
सीजेआई दीपक मिश्रा ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे है कि एक महिला एक पुरूष के साथ रेप नहीं कर सकती है। लेकिन इसके लिए अलग-अलग प्रावधान है, ऐसे मामलों में रेप की तरह महिलाओं पर केस नहीं किया जा सकता है।