सुशील कोली, कोल्हापुर, महाराष्ट्र की निवासी, अपने इलाके मे उम्मीद की किरण बनकर आई है, और इसका सारा श्रेय जाता है शिक्षा के क्षेत्र मे उनके अनुकरणीय योगदान को।
शिक्षा के महत्व को अच्छे से जानने और समझने वाली सुशीला ने पाया की उनके गाँव मे एक भी आँगनवाड़ी केंद्र नही था। उनका मानना था कि यदि गांव मे आँगनवाड़ी केंद्र होता तो गाँव के बच्चों को शिक्षा के अवसर मिलेंगे, जो कि आँगनवाड़ी केंद्र के अभाव मे खेती करने को विवश थे।
सुशीला ने इस बारे मे कुछ करने का विचार किया। परंतु इस कार्य के लिए उनकी तरफ मदद का कोई हाथ बढ़ा और सरकार की तरफ से भी कोई खास उत्साह नही दिखा। तब उन्होंने ने अपने घर मे ही आँगनवाड़ी की शुरुआत की और 2 साल तक बच्चों को शिक्षा प्रदान की। बाद मे आँगनवाड़ी एक मंदिर मे स्थानांतरित कर दिया गया।
सुशीला ने बताया, “पहले माँ-बाप बच्चों को आँगनवाड़ी मे आने से रोकते थे, और उन्हे खेतों मे ले जाते थे।” लेकिन सुशीला ने घर-घर जाकर लोगों को जागरूक करना जारी रखा और इससे बच्चों की संख्या मे इज़ाफ़ा भी हुआ। 1991 मे शुरू यह आँगनवाड़ी 2002 तक चला। बाद मे उसे एक सरकारी स्कूल -बलवाडी विद्या मंदिर मे बदल दिया गया । इन 11 सालों मे उन्होंने एक शिक्षिका के तौर पर 250 से ज्यादा बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी, वह भी मुफ्त।
सुशीला एक साहसी और अपरंपरागत महिला हैं। उन्होंने खेतिहर मजदूर बाबूराव कोली से,अपने परिजनों के विरूद्ध जाकर विवाह किया। बाबूराव एक विदुर है और उनकी पहले से भी दो संताने है।
बाबूराव का मानना है कि सुशीला से शादी करना उनके जिस का सबसे अच्छा फैसला था। उन्होंने कक्षा 4 के बाद पढ़ाई छोड़ दी,परंतु वह चाहते थे कि उनके बच्चे पढ़-लिख कर सफल बने।
बाबूराव बताते है की,”मै हमेशा चाहता था की मेरे बच्चे शिक्षित हो। मेरा एक बेटा टीचर है और एक ठाणे मे,असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर है।” बाबूराव और सुशीला का भी एक बेटा है, और वह इचलकरंजी मे भूगोल का प्रोफेसर है और पीएचडी कर रहा है।
सुशीला अपने छात्रों की सफलता के बारे मे बहुत गर्व से बताती है, वह कहती है कि, “लोगों को पढ़ाने से ज्यादा खुशी मुझे कही नही मिलती। मै सबसे इस पेशे को अपनाने की गुजारिश करूंगी।”