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    ट्रांसजेंडर

    ट्रांसजेंडर्स के लिए देश में सोच बदलने लगी है। साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर्स को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी थी। वर्तमान में देखा जाए तो ट्रांसजेंडर्स को लेकर लोगों के मन में काफी बदलाव आया है।

    ट्रांसजेंडर्स से संबंधित आदेश पारित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ट्रांसजेंडर्स को शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी और तीसरे लिंग श्रेणी से संबंधित होने के आधार पर उन्हें रोजगार दिया जाएगा।

    इसी आदेश के बाद अब नागपुर की विद्या कांबले महाराष्ट्र लोक अदालत में पहली ट्रांसजेंडर्स सदस्य न्यायाधीश बनी है। महज 29 साल की उम्र में विद्या कांबले को देश के लोक अदालत के पहले ट्रांसजेंडर सदस्य न्यायाधीश होने का खिताब मिला है।

    विद्या ने कई व्यक्तिगत मुद्दों से लडकर उन्हें दूर किया। 17 साल की उम्र में विद्या को अपना घर और परिवार छोडने को मजबूर होना पड़ा था। अब वह सारथी ट्रस्ट में रहती है। वर्तमान में सार्थी ट्रस्ट में परामर्शदाता और पूर्व-शिक्षक के रूप में काम करने वाली कांबले ने कहा कि मेरे परिवार ने मुझे छोड़ दिया है, लेकिन मुझे एक नया परिवार मिल गया है।

    इसी कारणों से आज मैं इस सम्मानित कुर्सी पर काबिज हुआ हूं। मैं ऐसे व्यक्तियों से मिल रहा हूं जो परेशान है। उनकी समस्याओं को सुलझाने व मदद करने में सक्षम हूं।

    विद्या मध्ययुगीन पैनल की 10-दिवसीय पूर्व चर्चा वार्ता का एक हिस्सा होगा जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय लोक अदालत में पार्टियों के बीच मुद्दों को हल करना है। 10 फरवरी को नागपुर में चर्चा शुरू हुई है। उनके साथ पैनल में वी एस मुरुकते, सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश और वकील रोहिणी देशपांडे शामिल है।