महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने राज्य में मराठा समुदाय के लिए 16 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की है। इस सिफारिश की मंजूरी के बाद राज्य में कुल 68 फीसदी आरक्षण हो जाएगा।
सूत्रों के अनुसार जस्टिस एमडी गायकवाड़ की अध्यक्षता वाले कमीशन ने कहा है कि महाराष्ट्र की आबादी में मराठों का हिस्सा 30% है और वो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए है।
आयोग के अनुसार पिछड़ेपन की सभी 25 पैरामीटर पर मराठा समुदाय खड़ा उतरा है।
वर्तमान में राज्य में 52 फीसदी आरक्षण लागू है। अगर आयोग की सिफारिशों को मंजूर कर लिया जाता है तो आरक्षण बढ़कर 68 फीसदी पहुँच जाएगा।
आयोग के सचिव ने गुरुवार को महाराष्ट्र के मुख्य सचिव डीके जैन को रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट पर संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा करने में सरकार को 15 दिन का समय लगेगा और इसे अगली कैबिनेट मीटिंग में एक सीलबंद रिपोर्ट के रूप में जमा किया जाएगा।
सूत्रों के अनुसार विधानसभा की शीतकालीन सत्र में फडणवीस सरकार इस सिफारिश को विधानसभा में पास करवा सकती है। महाराष्ट्र सरकार ने इस मुद्दे को महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पास जून 2017 में भेजा था और आयोग ने अगस्त 2017 से इस बार काम करना शुरू कर दिया था।
2014 में राज्य विधायिका ने समुदाय को आरक्षण देने के लिए एक बिल पारित किया। उस कानून पर बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा रोक लगा दिया गया था तब वर्तमान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सर्वोच्च न्यायालय में कोई राहत नहीं मिलने के बाद राज्य सरकार ने फिर से उच्च न्यायालय का रुख किया, जिसने पिछड़ा कमीशन बनाने और इसके माध्यम से एक रिपोर्ट जमा करनेका आदेश दिया।
पिछले 15 महीनों में आयोग ने महाराष्ट्र के कई हिस्सों का दौरा किया है और उन्होंने मराठा समुदाय के लगभग 2,00,000 सदस्यों की शिकायतों को सुना है, जिसके बाद 25,000 परिवारों के सर्वेक्षण भी हुए थे।
राज्य में कृषि संकट के बाद, मराठ, जो राज्य की लगभग 13 करोड़ आबादी का एक तिहाई हिस्सा हैं, पिछले साल से नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग कर रहे हैं।
2016 और 2017 में समुदाय ने आरक्षण और अन्य मांगों को लेकर 50 से ज्यादा मौन जुलुस निकालें और विरोध प्रदर्शन किया। इस साल अगस्त में इनका प्रदर्शन हिंसक हो गया जब प्रदर्शनकारियों ने बसों और वाहनों को आग के हवाले कर दिया। दंगों और आग लगाने के लिए पुलिस ने 9 4 लोगों को गिरफ्तार किया था।