महाराष्ट्र सरकार ने एक बड़ा राजनितिक दांव खेलते हुए राज्य में मराठा समुदाय को सामजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा मानते हुए 16 फीसदी आरक्षण की मंजूरी दे दी। इस फैसले के साथ ही महारष्ट्र में शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 68 फीसदी आरक्षण हो गया है।
महारष्ट्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र की पूर्व संध्या पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि सरकार ने 15 नवम्बर को महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के सौंपे गए रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद मराठा समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है।
गौरतलब हैं कि 15 नवम्बर को महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी जिसमे मराठाओं को आर्थिक और सामजिक रूप से पिछड़ा बताते हुए 16 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की गई थी। आयोग के अनुसार मराठा समुदाय पिछड़ेपन के सभी 25 पैरामीटर पर खड़ा उतरा था।
मुख्यमंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र में कुल आबादी का 32-35 फीसदी हिस्सा मराठा समुदाय है। राज्य में पिछड़ी जातियों पर पहले से लागू आरक्षण में बिना कोई छेड़छाड़ करते हुए तमिलनाडु की तर्ज पर मराठा समुदाय को आरक्षण दिया गया है।
तमिलनाडु में, एससी / एसटी और ओबीसी को संवैधानिक रूप से गारंटीकृत आरक्षण के अलावा, राज्य सरकार कई पिछड़े और विशेष रूप से पिछड़ी जातियों और वर्गों को आरक्षण प्रदान करती है, जिसने आरक्षण का कुल प्रतिशत 69 फीसदी पहुँच गया है। 1990 के दशक में सुप्रीम कोर्ट ने कोटा पर 50% की सीमा लगाई थी, और तमिलनाडु का मामला सप्रीम कोर्ट में लंबित है।
2016 और 2017 में मराठा समुदाय ने आरक्षण और अन्य मांगों को लेकर भरी प्रदर्शन किया। इस साल अगस्त में इनका प्रदर्शन हिंसक हो गया जब प्रदर्शनकारियों ने बसों और वाहनों को आग के हवाले कर दिया। दंगों और आग लगाने के लिए पुलिस ने 94 लोगों को गिरफ्तार किया था।