देश में एक तरफ लगातार सांप्रदायिक दंगे, हिंसा जैसी खबरें छाई हुई हैं और इस शोर में बेतहाशा बढ़ती महँगाई (Inflation) और बेरोजगारी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे कहीं दब कर रह गए हैं। भारत इस समय एक अज़ीब दौर से गुजर रहा है।
कोरोना महामारी के बाद डांवाडोल हुई अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे अपने पुराने स्थिति पर लौट रही है। दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं इस समय महंगाई के दुष्चक्र में है और भारत भी इस से अछूता नहीं है।
अगर आप अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धो के छात्र हैं या इसमें रूचि रखते हैं तो आपके लिए इस समय बहुत कुछ सीखने और समझने का दौर है। तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के कारण ईंधन से लेकर हर जरुरत की चीज लगातार महँगी होती जा रही है।
भारत के पडोसी मुल्क श्रीलंका में इस समय महँगाई (Inflation) का जो आलम है वह किसी से छुपा नहीं है। हिंदुस्तान का हमसाया मुल्क पाकिस्तान में तख्ता -पलट हो चुका है। यहाँ भी राजनीतिक जोड़ तोड़ के साथ साथ महंगाई और बेरोजगारी का चरम पर होना भी इमरान सरकार के ख़िलाफ़ एक बड़ा मुद्दा बना।
एक ऐसी दौर में जब महँगाईऔर बेरोजगारी जैसी समस्या भारत के आगे भी एक बड़ी चुनौती बनकर विद्यमान है, भारत इन दिनों लाउडस्पीकर, हनुमान-चालीसा, हिज़ाब, हलाल आदि जैसे सांप्रदायिक मुद्दों को लेकर आपस में ही उलझा हुआ है।
मार्च में खुदरा महँगाई (Retail Inflation) चरम पर
मार्च के महीने में देश में खुदरा महँगाई पिछले 17 महीने की तुलना में चरम पर थी। भारत का खुदरा महंगाई दर 6.97 % रहा जो कि RBI द्वारा निर्धारित उच्चतम दर (6%) से कहीं ज्यादा है।
12 अप्रैल को जारी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित महँगाई रिपोर्ट (Inflation Report) के मुताबिक़ पिछले कुछ दिनों में खाद्य सामग्रियों के दाम लगातार बढ़ें हैं और इसलिए खुदरा महंगाई दर लगातार तीसरे महीने में निर्धारित सीमा (6 %) से ज्यादा है। फ़रवरी के महीने में यह दर 6.07% था।
गौरतलब है कि इस रिपोर्ट में जिन आंकड़ों का इस्तेमाल हुआ है उसमें तेल की लगातार बढ़ती कीमतों का प्रभाव बहुत ज्यादा शामिल नहीं है। इसके पीछे की वजह है कि तेल के दामों का बढ़ना मार्च के उत्तरार्ध (22 मार्च के बाद ) में बढ़े हैं। अर्थात तेल की कीमतों के बढ़ने का महंगाई पर और असर आने वाले दिनों में पड़ने वाला है और सबकुछ ऐसे ही चलता रहा तो अप्रैल -मई में महंगाई दर और बढ़ सकती है।
सरकार इस समय तेल की कीमतों में कोई कटौती करने के मूड में फ़िलहाल दिख भी नहीं रही है क्योंकि अभी हाल फ़िलहाल में देश में कोई चुनाव है नहीं। चुनाव और तेल की कीमतों का सम्न्बंध ऐसे तो कहने को नहीं है लेकिन व्यवहारिकता की कसौटी पर देखें तो हकीक़त यही है कि इस देश की सरकारें महंगाई बेरोजगारी और ईंधनों की कीमतों पर तभी ध्यान देती हैं जब देश में कोई ना कोई चुनाव हो।
उदाहरण के लिए उत्तरप्रदेश सहित 5 राज्यों के बीते चुनावों को देखिये। इन चुनावों के दौरान लगभग ४ महीने तक तेल की कीमतें स्थिर रहीं थीं और जैसे ही चुनाव परिणाम आये, ईंधनों की कीमतों में तेज़ी से इजाफ़ा होने लगा।
मार्च में बेरोजगारी दर में गिरावट, लेकिन अभी भी स्थिति चिंताजनक
आर्थिक मामलों पर जानकारी उपलब्ध कराने वाली संस्था CMIE (Centre for Monitoring Indian Economy) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार देश की बेरोजगारी दर 7.6% रही जबकि फ़रवरी महीने में यह दर 8.1 %थी।
साथ ही इसी रिपोर्ट के मुताबिक़ इन्ही दो महीनों के रोजगार-दर की तुलना करें तो इसमें भी गिरावट दर्ज की गई है। फ़रवरी में रोजगार दर 36.7 % से घटकर 36.5% हो गयी। इसलिए बेरोजगारी दर में गिरावट के बावजूद लेबर फाॅर्स में कमी की वजह से रोज़गार दर में भी गिरावट दर्ज किया गया है और यह एक चिंता की बात है।
The unemployment rate falls, from gracehttps://t.co/35LDO3lWKF#EconTwitter #UnemploymentFallsFromGrace pic.twitter.com/GbrVoy20n2
— CMIE (@_CMIE) April 14, 2022
महँगाई से अर्थव्यवस्था की सेहत चिंताजनक लेकिन देश साम्प्रदायिक झगड़ो में व्यस्त
देश की अर्थव्यवस्था निश्चित तौर पर एक चुनौती भरे दौर से गुजर रहा है। बेरोजगारी और महँगाई लगातार पाँव पसारते जा रहे हैं। पडोसी मुल्कों की हालात चीख चीख कर कह रहे हैं कि ये वक़्त एकजुट होकर इस चुनौती से निपटने का दौर है। दक्षिण के कर्नाटक से लेकर पश्चिम में गुजरात महाराष्ट्र और पूरब में बिहार बंगाल तक पिछले कुछ दिनों में साम्प्रदायिकता की आग भड़क रही है।
वक़्त की दरकार है कि बेरोजगारी, महँगाई, प्रदूषण, स्वास्थ-व्यवस्था, शिक्षा आदि पर चर्चा होनी चाहिए लेकिन देश को हिजाब, हलाल मीट, मंदिरो परिसरों में मुस्लिम व्यापारियों से रोज़गार पर प्रतिबन्ध, रामनवमी के सांप्रदायिक दंगे, मस्जिदों से लाउडस्पीकर को हटाने और अज़ान के जवाब में हनुमान चालीसा बजाने जैसी घटनाएं या ऐसी चेतावनी आ रही है।
लेकिन पता नहीं इस मुल्क को किसकी नज़र लग गई है। भारत में नजर लगने और उसके उतारने की परंपरा रही है। नज़र उतारने के लिए निम्बू मिर्ची का इस्तेमाल होते आया है लेकिन ऐसा लगता है की महँगाई के कारण निम्बू की बढ़ी कीमतों के कारण ,जो पिछले दिनों खबरों थी, देश को लगी साम्प्रदायिक दंगे फसाद वाली नज़र नहीं उतारी जा रही है
सांप्रदायिक दंगो से विश्वभर में भारत की साख पर लगता है बट्टा
आज रूस यूक्रेन युद्ध के बीच जब पूरी दुनिया भारत के तरफ एक उम्मीद की नजरों से देख रही है, ऐसे में भारत हिन्दू मुस्लिम हिज़ाब हालाल और लाउडस्पीकर जैसे मुद्दों में उलझा हुआ है। इन उन्मादी भीड़ को यह समझ नहीं आता कि इन दंगो और झगड़ो के कारण विश्व भर में भारत की क्षवि को नुकसान पहुँचता है।
इसका ताजातरीन उदाहरण अभी भारत और अमेरिका के बीच 2+ 2 डायलाग में दिखा जब अमेरिका के होम सेक्रेटरी ने सार्वजनिक मंच से भारत में मानवाधिकार के उलंघन का मामला उठाया।
इसलिए देश के भीतर एक ऐसे माहौल का बनाया जाना जरूरी है कि जहाँ बेबुनियादी मुद्दों के जगह महँगाईजैसे कोर मुद्दों पर चर्चा हो। अंत में हिंदी के प्रसिद्ध कवि श्रीकांत शर्मा की एक कविता “हस्तक्षेप” की चंद पंक्तियाँ जो आज के हालत पर माकूल फिट बैठती हैं :
कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल ना पड़ जाये
मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए
मगध में ना रही
तो कहाँ रहेगी?
क्या कहेंगे लोग ?
लोगों का क्या
लोग तो अब यह भी कहते हैं.
मगध अब कहने को मगध है,
रहने को नहीं
कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज़ ना बन जाये
एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप –
वैसे तो मगधवासियों
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से –
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुजरता
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है-
मनुष्य क्यों मरता है ?
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