नई दिल्ली, 3 जुलाई (आईएएनएस)| पशुओं के खिलाफ क्रूरता पर रोक अधिनियम के कुछ प्रावधानों में संशोधन को चुनौती देने वाली एक याचिका दायर होने पर सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
यह संशोधन किसी मामले के लंबित होने पर किसी व्यक्ति को मवेशियों के स्वामित्व से वंचित करता है। इससे पहले किसी जानवर को सिर्फ तभी कब्जे में लिया जा सकता था, जब उसके स्वामी पर दोष सिद्ध हो चुका हो।
न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की खंडपीठ ने केंद्र सरकार से इस याचिका पर चार सप्ताह में जवाब देने के लिए कहा है।
अदालत एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) बफैलो ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष मोहम्मद अकील कुरैशी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
एसोसिएशन की तरफ से पेश अधिवक्ता सनोबर अली कुरैशी ने पशुओं के खिलाफ क्रूरता पर रोक अधिनियम नियम 2017 के कुछ प्रावधानों को हटाने का आग्रह किया था। इन प्रावधानों को केंद्र की 23 मई, 2017 को जारी अधिसूचना पर संशोधित किया गया था।
इसे असंवैधानिक बताते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि संशोधित कानून पशुओं के खिलाफ क्रूरता पर रोक अधिनियम, 1960 की धारा 29 और 35 का उल्लंघन करता है, और संविधान के खिलाफ है।
धारा 29 के अनुसार, किसी जानवर को अधिनियम के इन प्रावधानों के अंतर्गत आरोपी के दूसरी बार दोषी ठहराए जाने पर किसी जानवर को जब्त किया जा सकता है।