मध्यप्रदेश में शराब की दुकानों का दायरा बढ़ाए जाने के फैसले के बाद से सियासी भूचाल आया हुआ है। लेटरवार चल पड़ा है, वार-पलटवार का दौर जारी है, इसमें पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मुख्यमंत्री कमल नाथ आमने-सामने हैं। वहीं नेताओं के बयानों ने सियासी माहौल को गर्माया हुआ है।
ज्ञात हो कि, राज्य के आबकारी विभाग ने शराब की छोटी दुकानें खोलने के लिए अधिसूचना जारी की है। इस नई व्यवस्था में शहर में पांच किलोमीटर और गांव में 10 किलो मीटर की दूरी पर शराब कारोबारी छोटी दुकान खोल सकेंगे, इसके एवज में उन्हें लाइसेंस शुल्क देना होगा। इससे राज्य में बड़ी संख्या में नई दुकानें खुलने की संभावना जताई जा रही है।
शराब नीति में किए गए संशोधन को लेकर पहला हमला पूर्व मुख्यमंत्री चौहान ने बोला और मुख्यमंत्री कमल नाथ के नाम खत लिख डाला। उसमें उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार शराब माफियाओं को नए साल का तोहफा देकर मध्यप्रदेश को मदिरा प्रदेश बनाया जा रहा है। उन्होंने भाजपा के काल में एक भी नई शराब दुकान न खुलने का दावा किया।
चौहान के पत्र का मुख्यमंत्री कमल नाथ ने कुछ ही घंटों में जवाब दे दिया। साथ ही शिवराज के सभी आरोपों का तथ्यों और आंकड़ों के जरिए जवाब दिया। उन्होंने कहा कि शिवराज ने नीति का अध्ययन किए बिना ही पत्र लिख दिया है। इससे कोई भी नई दुकान नहीं खुलेगी, बल्कि मूल दुकानदार कुछ शर्तो के आधार पर छोटी दुकान खोल सकता है। बात भाजपा के शासनकाल की तो सात साल में 891 से ज्यादा नई दुकानें खुलीं।
मुख्यमंत्री कमल नाथ का जवाब मिलने के बाद चौहान ने एक और पत्र लिख डाला है। इसमें कहा गया है कि मुख्यमंत्री कुतर्क दे रहे हैं, जो गले नहीं उतर रहा। ऐसा ही है तो घर तक शराब की होम डिलीवरी करा दीजिए।
मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री के बीच चल रहे लेटर वार के बीच अन्य नेताओं ने भी मोर्चा संभाल लिया है। एक दूसरे पर हमले बोले जा रहे हैं। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह और नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने तो सरकार की मंशा पर सवाल उठाए।
उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने अपने वचनपत्र में गांव-गांव गौशाला खोलने की बात की थी, मगर मधुशाला खोली जा रही है। वर्तमान सरकार प्रदेश को ‘मद्य प्रदेश’ बनाने को आतुर है।
वहीं सत्तापक्ष की ओर से सहकारिता मंत्री डॉ. गोविंद सिंह ने सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि इससे माफिया पर अंकुश लगेगा।
राजनीति के जानकारों की मानें तो राजनीतिक दलों में इन दिनों विरोध की होड़ लगी हुई है। सरकारें जो फैसला लें उसका विरोध करो। केंद्र में सरकार कोई फैसला करती है तो विपक्षी दल मोर्चा संभाल लेते हैं, वहीं राज्य की सरकार के फैसलों पर विरोध दर्ज कराया जा रहा है। दोनों ही दल विरोध की राजनीति पर उतारू हैं, तर्क का अभाव दोनों ओर से नजर आ रहा है। यही कारण है कि जनता किसी के साथ भी खड़ी नजर नहीं आती।
राज्य में नेताओं में अपना प्रभाव या यूं कहें, असर दिखाने की भी होड़ है और लेटरबाजी भी उसी का हिस्सा माना जा रहा है। भाजपा में इन दिनों बिखराव है तो वहीं कांग्रेस सत्ता में होने के बावजूद एकजुट नहीं है। यही कारण है कि एक तरफ पूर्व मुख्यमंत्री तो दूसरी ओर मौजूदा मुख्यमंत्री को मोर्चा संभालना पड़ा है। कौन कितना असरदार है, यह सवालों में है।