मध्यप्रदेश सचिवालय में जनवरी के पहले कार्य दिवस पर “वंदे मातरम” नहीं गाए जाने की घटना ने राज्य में कांग्रेस और भाजपा के बीच बहस छेड़ दी है।
शिवराज सिंह चौहान के समय से महीने के पहले दिन सचिवालय में कार्य शुरू करने से पहले वन्दे मातरम गाने की परंपरा रही है जो इस बार कमलनाथ के नेत्रित्व में कांग्रेस की सरकार आने के बाद टूट गई।
इस घटना पर पहली बार बोलते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि “फिलहाल इस आदेश को होल्ड पर रखा गया है।” उन्होंने ये भी पूछा कि “जो वन्दे मातरम नहीं गाते क्या वो देशभक्त नहीं है?” मुख्यमंत्री ने कहा “महीने के पहले दिन सचिवालय में वंदे मातरम सुनाने के आदेश को फिलहाल रोक कर रखा गया है। आदेश को नए रूप में लागू करने के लिए निर्णय लिया गया है। जो लोग वंदे मातरम नहीं सुनते हैं वे देशभक्त नहीं हैं?”
वन्दे मातरम गाने की परंपरा पर रोक लगाने के आदेश पर बोलते हुए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, “यह एक मंत्र है जो देशभक्ति की भावना पैदा करता है और इसलिए भाजपा सरकार ने फैसला किया था कि हम इसके साथ साप्ताहिक कैबिनेट बैठकें शुरू करेंगे और इसे वल्लभ भवन (सचिवालय) में हर महीने के पहले दिन गाया जाएगा।”
शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस ने इस परंपरा को समाप्त कर दिया। मैं कांग्रेस सरकार से इसे फिर से लागू करने की मांग करता हूं और यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो मैं वल्लभ भवन में वंदे मातरम को देशभक्तों के साथ गाऊंगा। मैंने फैसला किया है कि 6 जनवरी को सुबह 11 बजे मैं परिसर में वंदे मातरम गाऊंगा।”
राज्य इकाई के भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने ट्वीट किया कि वंदे मातरम का प्रतिपादन राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) द्वारा किया जाता है, जो मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा आयोजित एक पोर्टफोलियो है।
समाचार एजेंसी पीटीआई के संपर्क करने पर, राज्य कांग्रेस के प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री अभी शहर से बाहर हैं। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम का प्रस्तुतीकरण नहीं हो सका क्योंकि एसआर मोहंती ने मंगलवार को मुख्य सचिव के रूप में पदभार संभाला है, जिसका अर्थ है कि अधिकारी व्यस्त हैं।
उन्होंने कहा कि “भाजपा इसपर बेवजह का विवाद उत्पन्न कर रही है। अगर ये कल (मंगलवार) को नहीं हो सका तो हो सकता है बुधवार को हो या उसके अगले दिन हो या फिर बाद में हो।”