मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय को दो अनुबंधक प्राध्यापकों (एडजंक्ट फैकल्टी) की कथित कार्यशैली ने विवादों का अखाड़ा बना दिया है। छात्रों का विरोध प्रदर्शन जारी है, वहीं अनुशासनहीनता के आरोप में कई छात्रों पर कार्रवाई किए जाने की तैयारी है। पत्रकारिता विश्वविद्यालय बीते कुछ वर्षो से सियासी अखाड़ा रहा है। एक खास विचारधारा को पोषित करने के आरोप लगे।
राज्य में सत्ता बदलने के बाद विश्वविद्यालय की तमाम व्यवस्थाओं में सुधार और बदलाव लाने की कोशिशें शुरू हुईं। राज्य के मुख्यमंत्री कमलनाथ तमाम संस्थाओं में सुधार लाने का वादा और दावा करते हुए कहते हैं, “हमने हर संस्थान और विभाग की जिम्मेदारी योग्य लोगों को सौंपी है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय का कुलपति दीपक तिवारी को बनाया। उनकी निष्पक्ष पत्रकारिता को देखकर ही उन्हें कुलपति बनाया गया है। उन्होंने तो कई बार मेरे खिलाफ ही लिखा है।”
एक तरफ जहां संस्थानों में सुधार लाने की बात कही जा रही है, वहीं दूसरी ओर एमसीयू के दो अनुबंधक प्राध्यापक दिलीप मंडल व मुकेश कुमार विवाद का कारण बन रहे हैं। मंडल पर आरोप है कि वे अपने ट्वीटर हैंडल से जातिवाद को भड़काने की कोशिश करते हैं, एक जाति विशेष पर टिप्पणी करते हैं, वहीं मुकेश कुमार पर भी जातिवाद का सहारा लेने का आरोप है। इन दोनों प्राध्यापकों के खिलाफ छात्र आंदोलनरत हैं।
छात्रों ने विश्वविद्यालय के भीतर पिछले दिनों प्रदर्शन किया और हंगामा किया। इन छात्रों को खदेड़ने के लिए पुलिस बुलाई गई। छात्रों के खिलाफ थाने में प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई है। इन छात्रों के समर्थन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और करणी सेना के कार्यकर्ता भी आए। विश्वविद्यालय प्रबंधन का कहना है कि पुरानी विचारधारा से जुड़े कुछ लोग बेवजह हंगामा और आंदोलन करा रहे हैं।
इस बीच, अभाविप के अभिषेक त्रिपाठी ने आरोप लगाया, “विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों के साथ पुलिस बुलाकर बर्बर व्यवहारा किया गया। जो फैकल्टी जातिवाद को बढ़ावा दे रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।”
दिलीप मंडल ने मंगलवार को ट्वीट किया, “मैं चाहता हूं कि मेरे लिखे हुए 20 लाख से ज्यादा शब्दों में एक बार भी किसी जाति के लिए कोई गाली हो तो उसे पेश किया जाए। डिजिटल में लिखी बात तो कहीं न कहीं रह ही जाती है। खोजकर निकालें। हां, मुझे जाति वर्चस्व से शिकायत है, वही शिकायत जो फुले को थी, वही शिकायत जो बाबा साहेब को थी।”
विश्वविद्यालय की एक साल की गतिविधियों पर नजर दौड़ाई जाए तो यहां गांधी के दर्शन को स्थापित करने की कोशिश हुई है। उच्च दर्जे के सेमीनार आयोजित किए गए और पत्रकारिता के छात्रों को पत्रकारिता जगत में आ रहे बदलाव से रूबरू कराने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए गए। लेकिन इसी दौरान दो अनुबंधक प्राध्यापकों पर जातिवाद फैलाने के आरोप लगे और विवाद बढ़ गया।
विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलसचिव दीपेंद्र बघेल ने कहा है, “जिन छात्रों ने हंगामा किया है, उनके खिलाफ कार्रवाई की तैयारी है। वहीं दोनों प्रेाफेसरों के खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हुए हैं। जांच जारी है।”
दोनों प्राध्यापकों के खिलाफ विभिन्न छात्र संगठनों और महाविद्यालयों के छात्र लामबंद हो चले हैं और उन्होंने सोमवार शाम को भी एक मार्च निकाला।
राज्य की पत्रकारिता से जुड़े लोगों का कहना है कि विश्वविद्यालय में अपनी गरिमा के अनुरूप कई वर्ष बाद पठन-पाठन का कार्य शुरू हो पाया है। छात्रों में पत्रकार और पत्रकारिता की समझ विकसित करने के लिए नवाचारों का सहारा लिया जा रहा है, उन्हें नई तकनीकों से अवगत कराया जा रहा है। इसी बीच दो प्रोफेसरों की कार्यशैली ने विश्वविद्यालय को राजनीति का अखाड़ा बना दिया है।