मध्य प्रदेश का मुरैना जहाँ विधानसभा की 6 सीटें है वहां मायावती के राजनितिक बिसात ने त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है। 2013 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने मुरैना में 6 में से 2 सीटों पर कब्जा किया था जबकि 2 सीटों पर वो दुसरे नंबर पर रही थी। इस बार सभी जातियों को साधने की कोशिश में मायावती ने सत्ता विरोधी रुझान से जूझ रही भगवा पार्टी के माथे पर पसीने ला दिए हैं।
मुरैना में एक रैली को सम्बोधित करते हुए मायावती ने अपने दलित वोटबैंक में अगड़ी जातियों और ओबीसी को भी जोड़ने का सन्देश देते हुए एक नए सामाजिक समीकरण की नींव रखी।
उन्होंने कहा ‘उत्तर प्रदेश में मेरी सरकार ने दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के उत्थान के साथ साथ अन्य जातियों के कल्याण के लिए विकास और क़ानून व्यवस्था में सुधर पर ध्यान लगाया।’ उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश को भाजपा और कांग्रेस की घिसीपिटी सरकार से मुक्ति चाहिए। सिर्फ बहुजन समाज पार्टी ही नयी उम्मीद और नए नजरिये के साथ सुनयोजित विकास दे सकती है।’
बसपा द्वारा भाजपा विरोधी वोटों को बांटने के इलज़ाम पर मायावती ने कहा कि उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन की कोशिश की थी लेकिन कांग्रेस बसपा को कमजोर करने के उद्देश्य से बहुत ही काम सीट देने का फैसला किया था।
प्रधानमंत्री मोदी पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि ‘प्रधानमंत्री ने सभी परिवारों को 15 लाख देने का वादा पूरा नहीं किया।’ उन्होंने भाजपा और कांग्रेस पर आरक्षण ख़त्म करने की साजिश करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि भाजपा और कांग्रेस गरीबों को ख़त्म कर बस बड़े उद्द्योगों को बढ़ावा देना चाहते हैं।
मुरैना एक वक़्त चम्बल के डकैतों के लिए बदनाम था लेकिन अब वहां सरसो की खेती होती है। एथलीट पान सिंह तोमर भी मुरैना के ही थे। गरीबी और पिछड़ेपन से जूझ रहे मुरैना के चुनावों में क्षेत्रीय मुद्दे ही हावी रहते हैं। कृषि आधारित आबादी बढ़ती महंगाई से परेशान है।
राजनितिक पंडितों के नजरों में 6 सीटों में से मुरैना, दिमानी और अम्बाह (एससी) पर इस बार काफी नजदीकी मुकाबला है। 2013 में बसपा ने दिमानी और अम्बाह पर कब्जा किया था। इस बार मायावती ने भाजपा और कांग्रेस को अपनी रणनीति पर दोबारा सोचने के विवश कर दिया है।
भाजपा ने दिमानी से छत्तर सिंह तोमर को खड़ा किया है तो कांग्रेस ने गिरिराज दंडोतिया को जबकि मायावती ने इस बार अपने ब्राह्मण विधायक बलवीर सिंह दंडोतिया को मुरैना से उतार दिया है जहाँ पिछली बार बसपा को भाजपा के हाथों 1 फीसदी से भी कम वोटों से हार मिली थी।