कावेरी नदी को लेकर जिस प्रकार तमिलनाडु व कर्नाटक राज्य के बीच विवाद बना हुआ है उसी प्रकार नर्मदा नदी के पानी को लेकर मध्यप्रदेश व गुजरात राज्य के बीच में भी जंग छिडी हुई है। नर्मदा जल बंटवारा आगामी विधानसभा चुनावों में मध्यप्रदेश राज्य पर असर डाल सकता है। पश्चिमी मध्यप्रदेश के किसान पहले ही किनारे पर मौजूद है।
नर्मदा पर इंदिरा सागर और ओमकेरेश्वर बांध द्वारा सिंचित पानी किसानों के हिंसक प्रदर्शन का हिस्सा था। यह कदम 50 कस्बों और 250 छोटे नदी के किनारों के बस्तियों में पेयजल आपूर्ति को प्रभावित करता है।
गुजरात सरकार ने पहली बार अक्टूबर 2017 में इस मुद्दे को उठाया और मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के अधिकारियों के बीच 9 फरवरी को मीटिंग आयोजित की गई। इसमें मध्यप्रदेश के ऊपर नर्मदा जल के हिस्से को जारी करने के लिए कहा गया।
नर्मदा जल बंटवारे के अनुसार मध्यप्रदेश को 18.25 एमएएफ (लाख एकड़ फीट) जल व गुजरात को 14 एमएएफ और राजस्थान व महाराष्ट्र 0.50 और 0.25 एमएएफ जल देने पर सहमति हुई थी। गुजरात ने दावा किया कि उसे अपने सहमत हुए प्रावधान के मुताबिक केवल 4.71 एमएएफ ही प्राप्त हुआ है।
दिल्ली में हुई बैठक में, मध्यप्रदेश ने इंदिरा सागर बांध से पहले ही जारी किए गए रोजाना 14 एमसीएम (मिलियन क्यूबिक मीटर) से अधिक जल जारी करने से मना कर दिया। चार राज्यों ने गुजरात को सरदार सरोवर बांध के नहर के आउटलेट के नीचे जलाशय का पानी उपयोग करने की अनुमति दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह केवल एक अस्थायी समाधान है।
मध्यप्रदेश में इस साल अच्छी वर्षा नहीं हुई है जिस वजह से नर्मदा नदी से पानी मिलना मुश्किल है। इन नदी पर बनाए गए बांधों में पानी की क्षमता काफी कम है। गुजरात में सरदार सरोवर में वर्तमान में पानी का स्तर 110 मीटर है जो कि इस साल के अनुमानित 5 मीटर तक कम है।
मध्यप्रदेश इस मुद्दे को रणनीतिक रूप से कम कर रहा है। गुजरात में इस बीच सरकार को नर्मदा नहर से किसानों द्वारा पानी के बहाव को रोकने के लिए मजबूर किया गया है ताकि डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।