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    जिस ‘निनावली सरकार’ के मुखिया बाबा मणीन्द्र महाराज पर अपने शिष्य की हत्या का आरोप लगा है, वह 17 साल पहले दूध बेचने वाला विजयशंकर हुआ करते थे। घर छोड़ने के महज पांच साल बाद वह रसूखदार ‘बाबा मणीन्द्र’ बन गए।

    निनावली गांव के वाशिंदे बताते हैं कि गोविंद द्विवेदी की सात संतानों में विजयशंकर दूसरे नम्बर के बेटे हैं। साल 2002 से पहले वह गांव में दूध खरीदकर आस-पास साइकिल से बेचा करता थे। उसके बाद 2002 में वह गांव छोड़कर कानपुर चले गए। पांच साल बाद जब वह कानपुर से गांव लौटे तो रसूखदार बाबा मणीन्द्र बन चुके थे और नेताओं के अलावा कई अधिकारी उनके शिष्य भी बन चुके थे।

    गांव का युवक मोनू बताता है, “अपने रसूख का फायदा उठाकर विजय ने गांव में ही एक आश्रम की स्थापना की, जिसे अब ‘निनावली सरकार’ के नाम से जाना जाता है। इस आश्रम से गांव के लोगों का जुड़ाव तो कम है, लेकिन यहां अकसर नेताओं और अधिकारियों का आना-जाना बना रहता है। यहां तक कि देश और प्रदेश के कई बड़े नेता बाबा का आशीर्वाद ले चुके हैं। उन्हें राज्य सरकार की ओर से एक उपनिरीक्षक और चार सशस्त्र सिपाही बतौर सुरक्षा गार्ड भी मिले हुए हैं।”

    बकौल मोनू, लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने मुख्य सड़क से आश्रम तक पक्की सड़क का निर्माण भी कराया है। बाबा इसी आश्रम में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहते हैं।

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