भूटानी प्रधानमन्त्री लोटाय त्शेरिंग की पहली अधिकारिक यात्रा भारत की है, उनके साथ विदेश मंत्री, वित्त मंत्री और अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी आये हैं। 27 से 29 दिसम्बर की यात्रा के दौरान लोटाय त्शेरिंग दोनों पडोसी राष्ट्रों के मध्य समझौते को मज़बूत करने के बाबत बातचीत करेंगे। भूटान में चुनावों के दैरान भारतीय मीडिया में कई अफवाहे उड़ाई जा रही थी कि भटन अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता चाहता है और इसके लिए उनका नया साथी चीन हो सकता है।
भूटानी प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा के चार महत्वपूर्ण बिंदु है, 720 मेगावाट द्विपक्षीय मंग्देच्छु प्रोजेक्ट के लिए अनुकूल शुल्क, भूटान के 12 वें पंचवर्षीय योजना में भारत का सहयोग, 2560 मेगावाट सुनकोश रिजर्वायर प्रोजेक्ट की शुरुआत और भूटान के लिए केंद्रीय जीएसटी में रियायत है। यह चार महत्वपूर्ण कार्य भूटान के आर्थिक भविष्य और व्यावसयिक योजना के लिए अहम है, और यह सभी भारत से जुड़े हुए हैं।
भूटान के प्रधानमन्त्री लोटाय ने स्पष्ट किया है कि नई दिल्ली के साथ शीर्ष मसलों में मंग्देच्छु प्रोजेक्ट के लिए अनुकूल शुल्क है, जो उत्पादन के लिए जनवरी 2019 से शुरू होना।
यह पहली बार है जब भूटान ने भारत से विकास कार्यक्रम में आर्थिक सहायता में वृद्धि की इच्छा जताई हो। भारत ने भूटान के 11 वें पंचवर्षीय कार्यक्रम में 23 फीसदी का सहयोग दिया था और विशाल 12 वें कार्यक्रम भारत को सिर्फ 14 फीसदी का योगदान ही देना होगा। भूटान दुसरे देशों से आर्थिक सहायता लेना धीरे -धीरे कम कर रहा है। इसका निर्णय पूर्व सत्तधारी सरकार पीपलस डेमोक्रेटिक पार्टी ने लिया था और हालिया सरकार इसी सिद्धांत को निभा रही है।
भारत के समक्ष भूटान का सबसे बड़ा विकास साझेदार बनने का यह बेहतरीन अवसर है, अपने मार्ग से भटकने के बजाये भारत को इस मौके को भुनाना चाहिए। भूटान भारत को एक चुनौती की रूप में नहीं बल्कि एक मौके के रूप में देखता है। भूटान आर्थिक विविधता कार्यक्रम में निवेश के विशाल स्त्रोत और उत्पादों के लिए विशाल बाज़ार और उससे मिलने वाली सुविधाओं के तौर पर भारत को एक मौके के तौर पर मानता है।
भूटान भारत का सबसे नजदीकी और भरोसेमंद दोस्त रहा है और हमेशा रहेगा। अब यह एक ऐसा समय है जब भूटान-भारत को अपनी दोस्ती को एक नए चरम पर ले जाना होगा।