31 अक्टूबर, मंगलवार शाम भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्येल वांगचुक, रानी जेटसन पेमा वांगचुक व प्रिंस जिग्मे नामग्याल वांगचुक चार दिन के महत्वपूर्ण दौरे के लिए भारत पहुंचे।
यह दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत व चीन के बीच 73 दिनों तक चले डोकलाम विवाद के बाद पहली बार भूटान नरेश भारत पहुंचे। एयरपोर्ट पर भारत की ओर से उनका स्वागत विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने किया।
भूटान नरेश व उनके परिवार के सत्कार से सम्बंधित पूरी तैयारी की जा चुकी है। बुधवार सुबह वह भारत के महामहिम यानि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और उप राष्ट्रपति वैंकेया नायडू से मिलेंगे । शाम को उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से रात्रिभोज में होगी जो उनके सम्मान में आयोजित किया जा रहा है ।
यह सब तो हुई आदर और सम्मान की बात, परन्तु यह दौरा राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टि से भी काफी अहम् है । जैसा कि ज्ञात है भारत, भूटान का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है और भारत की भूटान के साथ सुरक्षा संधि है जो कि इस दौरे का अहम् विषय होगा।
भारत और भूटान के बीच सुरक्षा, सीमा प्रबंधन, व्यापार, पारगमन, आर्थिक, जल विद्युत, विकास सहयोग और जल संसाधनों के क्षेत्र में सहयोग होता है। भारत ने भूटान में तीन हाइड्रोइलेक्टि्रक पॉवर प्रोजेक्ट भी स्थापित किए हैं जो दोनों देशो के व्यापारिक और विदेश निती को भी दर्शाता है। (सम्बंधित: भारत भूटान सम्बन्ध)
वैसे भारत और भूटान का इतना सदृढ़ रिश्ता देख चीन को एक सीधा सन्देश जा चूका है कि डोकलाम विवाद में भूटान हमेशा भारत के साथ रहेगा जिसका उदारहण उसे तब ही मिल गया था जब डोकलाम विवाद के दौरान भूटान ने चीन की अपेक्षा भारत पर भरोसा जताया था ।