भारत के लिए यह वर्ष अर्थव्यवस्था के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण रहा है। साल 2018 में भारत का विदेशीं कंपनियों से जुड़ी 38 अरब डॉलर की डील हुई थी, जबकि चीन के साथ विदेशी कंपनियों की डील का आंकड़ा 32 अरब डॉलर की थी। भारत में बैंकरप्सी कोड के लागू होने से विदेश निवेश की संभावनाएं बढ़ गयी है।
इस वर्ष भारत में एफडीआई 235 डील में 37.76 अरब डॉलर के साथ सबसे अधिक है। इससे पूर्व चीन में सबसे अधिक विदेशी निवेश किया जाता था, जो एशिया में सबसे ज्यादा था। अमेरिका और चीन के मध्य चले रहे व्यापार युद्ध को विदेशी निवेश में कमी का कारण माना जा रहा है।
जेपी मॉर्गन चंगे एंड कंपनी की प्रमुख अधिकारी कल्पना मोरपारिया ने कहा कि मर्जर और एक्विजिशन डील के लिहाज से यह साल काफी व्यस्तम रहा है आर आने वाले समय में भी इस तरीके की सौदेबाजी में वृद्धि रह सकती है।
ग्लोबल इन्वेस्टमेंट बैंक के भारत के चेयरमैन संजोय चटर्जी ने कहा कि राज्य या लोकसभा चुनावों जैसी लम्बी अवधि के राजनीतिक माहौल की अनिश्चिता के बावजूद वैश्विक निवेशक आमतौर पर भारत पर फोकस करते हैं। उन्होंने कहा कि यदि आप मुद्रास्फीति, वित्तीय घाटा या वृद्धि जैसे बड़े मापदंडों पर गौर करें, तो स्थितियां सामान्य हैं।
इसी वर्ष अमेरिकी रिटेल कंपनी वॉलमार्ट ने 16 अरब डॉलर में फ्लिप्कार्ट का अधिगृहण कर सबसे बड़ा विदेशी निवेश किया था। भारत की ई-कॉमर्स कंपनियों पर विदेश्कों की आने वाले समय में दिलचस्पी बरकरार रह सकती है। देश की जनसंख्या एक अरब होने के कारण वृद्धि की अच्छी संभावनाएं हैं और अमेरिका के साथ ही चीन के निवेशकों की दिलचस्पी भी भारतीय बाज़ार पर टिकी हुई है।
विदेशी निवेशकों को नए बैंकरप्सी कोड के कारण भी काफी अवसर मिल रहे हैं। देश की उत्पादन कंपनियां, विशेषकर स्टील सेक्टर की कर्ज में डूबी कंपनियां को इस कोड के तहत बेचा गया है। इससे विदेशी निवेशकों को भी इसमें निवेश करना का अवसर मिला था।