भारत और सिंगापुर हालिया वर्षों में कारोबारी संबंधो में हुई तीव्र वृद्धि गवाह है और दोनों मुल्को ने रणनीतिक साझेदारियो को मज़बूत करने का संकल्प लिया है। बीते वित्तीय वर्ष में भारत के विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का सबसे बड़ा स्त्रोत सिंगापुर हैं जो मार्च 2019 में 16.2 अरब डॉलर एक साथ खत्म होगा भारत से विभिन्न सेक्टरो में 20 प्रतिशत निवेश सिंगापुर में किया जाता है।
भारत-सिंगापुर साझेदारी
सिंगापुर में करीब 9000 कंपनियों ने अपना दफ्तर यहाँ स्थापित किया है। इस द्वीपीय राज्य में भारतीय तीसरा सस्बे अधिक पर्यटन समूह है और यह सालाना 15 फीसदी की तीव्रता से बढ़ रहा है। हर सप्ताह 18 भारतीय और सिंगापुर शहरो को 500 फ्लाइटो के माध्यम से जोड़ेगा।
बीते सप्ताह कारोबारी सम्मेलन में भारत और सिंगापुर के चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स और पेशेवर संगठनो के विभागों ने “भारत-सिंगापुर:द नेक्स्ट फेज” का आयोजन किया था। इसमें भारत के विदेश मन्त्री एस जयशंकर, आवासीय एवं शहरी राज्य मंत्री हरदीप सिंह पूरी शामिल हुए थे।
शुरूआती स्मबोधन में सिंगापुर के विदेश मन्त्री विवियन बालकृष्ण ने कहा कि “भारत का उद्देश्य साल 2024 तक मौजूदा सकाम घरेलू उत्पाद को दोगुना यानी पांच ट्रिलियन डॉलर करना है और अगले पांच वर्षों में इंफ्रास्ट्रक्चर बजट को 13.9 अरब डॉलर करना है। उन्होंने यकीन है कि उनके इरादों को मुकाम तक पंहुचाने के लिए सिंगापुर एक बेहतरीन विकल्प है इसमें संरचनात्मक योजना, जल संरक्षण और कारोबारी विस्तार शामिल है।”
उन्होंने कहा कि “हमें मालूम है कि भारत के शहरीकरण में हम एक प्राकृतिक साझेदार है। शहरी विकास, योजना और ढांचागत वित्त में हमारा अनुभव भारत के लिए जरुरी है। आसियान आर्थिक समुदाय के साथ 2.8 अरब ट्रिलियन व्यापार के लिए सिंगापुर भारत का मुख्य द्वार हो सकता है।”
भारत का सहयोग
बालाकृष्ण ने कहा कि “हमारी विविध जनसँख्या है और हम आपके विकास में सहयोग के लिए हमारे पास इन्फ्रास्ट्रक्चर है।” जयशंकर ने चिंता व्यक्त की कि “यह अन्य देशो के साथ भारत के व्यापार घाटे को बढ़ा देगा।” आरसीईपी दस आसियान देशो के बीच हुआ मुक्त व्यापार समझौता है जो अभी विश्व के 40 फीसदी व्यापार को कवर करता है। इसमें भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल है।
सिंगापुर के व्यापार, उद्योग और शिक्षा के राज्य मंत्री ची होन्ग टेट ने कहा कि “आर्थिक मुनाफे को दरकिनार कर हम भारत को आरसीईपी का भाग बनाना चाहते हैं। हमें यकीन है कि यह भारत और आसियान के बीच मज़बूत संबंधों को जोड़ेगा।” सम्मेलन के दूसरे दिन फोकस में वित्त, इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और मैक्रो इकोनॉमिक्स रहा था।”