भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने वियतनाम की यात्रा की थी। भारत और वियतनाम ने रक्षा सहयोग और तेल निर्यात में द्विपक्षीय संबंधों के विस्तार करने का निर्णय लिया है। साथ ही इंडो-पैसिफिक और दक्षिणी चीनी सागर के इलाके में चीन की बढती गतिविधियों पर अंकुश लगाने का भी निर्णय लिया है।
भारत के विदेश मंत्रालय ने बताया कि राष्ट्रपति कोविंद के वियतनाम दौरे पर दोनों राष्ट्रों ने रक्षा और सुरक्षा सहयोग पर अपने विचार साझा किये और इसे अपनी रणनीतिक साझेदारी का महत्वपूर्व स्तंभ बताया था। राष्ट्रपति कोविंद ने अपने वियतनामी समकक्षी न्गुयेन फु त्रोंग ने साल 2015-20 तक रक्षा सहयोग पर अपने विचार साझा किये थे।
जारी साझा बयान के मुताबिक दोनों राष्ट्रों के प्रमुखों ने मानव संसाधन विकास के प्रशिक्षण में आगे बढ़ने और इसका दोनों देशों की जल, थल, वायु औत तटीय सेनाओं के बीच प्रचार करने पर सहमती जताई है।
साथ ही साइबर सुरक्षा और जानकारी साझा सहयोग करने पर भी रजामंदी दी है। वियतनाम ने भारत द्वारा रक्षा विभाग के लिए दिए गये 500 मिलियन डॉलर की राशि की सराहना की है।
साथ ही दोनों राष्ट्रों ने संयुक्त राष्ट्र की शांति अभियान में शामिल होने के लिए अपने अनुभवों, अपराधिक सूचना और कानून को साझा करने पर सहमती जताई है। बयान के मुताबिक उन्होंने द्विपक्षीय निवेश को बढाने और सहयोग प्रोजेक्ट का प्रचार करने की सहमती जताई है।
वियतनाम ने इस ऐलान का स्वागत किया और कहा कि भारतीय कंपनियों के वियतनाम के ऊर्जा क्षेत्रों में निवेश के रास्तों को निवेश के लिए आसान बनाएगी।
भारत और वियतनाम ने दक्षिणी चीनी सागर की हालिया तस्वीर पर विचार साझा किये थे। उन्होंने इस इलाके में शांति, स्थिरता, सुरक्षा और नौचालन की स्वतंत्रता की महत्वता को भी बताया था।
वियतनाम, फ़िलीपीन्स, मलेशिया, ताइवान और ब्रूनेई दक्षिणी चीनी सागर पर अपना दावा ठोकते हैं। उन्होंने आतंकवाद को वैश्विक शांति, स्थिरता और रक्षा को भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया था।
वियतनाम ने बताया कि आतंवाद किसी धर्म, राष्ट्रीयता, नागरिकता व सांस्कृतिक समूहों से जुड़ा हुआ नहीं होता है।
उन्होंने कहा कि सभी देशों को आतंकवाद से निपटने के लिए व्यापक रणनीति अपनानी चाहिए। दोनों राष्ट्रों ने जल्द ही आतंवाक के खात्मे के लिए एक समझौता अपनाने पर सहमती दी है।