साल 2018 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में नवंबर महीने के मध्य में, खतरनाक उच्च स्तर के वायु में थे जिन्होंने दिल्ली के वायु गुणवत्ता सूचकांक को “बहुत खराब” ज़ोन में धकेल दिया। इससे दिल्ली का प्रशासन दहशत में आ गया एवं ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिए निजी वाहनों पर प्रतिबंध वापस लाने की बात की। इसी समय में भारत के कुछ अन्य शहरों जैसे अहमदाबाद, चेन्नई, हापुर एवं गया आदि में भी वायु की गुणवत्ता खराब हुई लेकिन इस पर किसीने गोर नहीं किया।
2016 में विश्व के विभिन्न शहरों में प्रदुषण की तुलना :
साल 2016 में विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा विश्व में सबसे ज्यादा प्रदुषण वाले शहरों का सर्वे किया गया था जिसमे से शीर्ष 13 स्थानों पर भारत के शहर थे। इन शहरों में कानपुर सबसे आगे था एवं फरीदाबाद दुसरे स्थान पर था। इसके बाद जब 2018 में यह जांच की गयी तो कुछ अच्छी खबर मिली। यह साल हवा की गुणवत्ता के लिए अच्छा माना जा रहा है।
2018 में कहीं सुधार तो कहीं हालात और बिगड़े :
यदि हवा की गुणवत्ता के आंकड़ों को देखा जाए तो 2016 की ने 2018 में बहुत ही सुधार दिखाया है। कानपुर शहर जोकि साल 2016 में सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहर था, इसकी हवा की गुणवत्ता में 2018 में काफी महत्वपूर्ण सुधार देखने को मिला।
इसके बिलकुल विपरीत ग़ाज़िआबाद एवं गुडगाँव शहर जिनका 2016 में प्रदुषण स्तर नहीं मापा गया था इन शहर में हवा की गुणवत्ता में बहुत बड़ी गिरावट देखी गयी है। इसके अलावा दिल्ली के कुछ सैटेलाइट शहर जिनके 2016 उपलब्ध नहीं हैं वे शहर कानपुर, गया के 2016 के आंकड़ों की तुलना में भी बहुत नीचे जा चुके हैं।
क्यों हैं ये हालात मनुष्यों के लिए जानलेवा :
विश्व स्वास्थ संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार इन शहरों की हवा में प्रदूषण की वजह से 2.5 और 10 माइक्रोन व्यास से कम के छोटे कण इसी हवा में मौजूद हैं। ये कण मनुष्यों के स्वसन तंत्र के लिए जानलेवा हैं। ये छोटे कण फेफड़ों को भेदने और बड़ी मात्रा में अपने रक्तप्रवाह में प्रवेश करने में सक्षम हैं।
इसके अलावा डब्लूएचओ के अनुसार, इन कणों के लगातार संपर्क से हृदय और श्वसन संबंधी बीमारियों और साथ ही फेफड़ों के कैंसर के विकास के जोखिम में योगदान होता है।