Thu. Nov 21st, 2024
    भारत रत्न से सम्मानित होंगे 'जननायक' कर्पूरी ठाकुर, दलितों और पिछड़ों के सच्चे हितैषी

    भारतीय राजनीति के इतिहास में आज एक सुनहरा अध्याय जुड़ गया है। भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से पूर्व बिहार मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत सम्मानित किया जाएगा। राष्ट्रपति भवन द्वारा बुधवार को जारी विज्ञप्ति में किए गए इस ऐतिहासिक घोषणा से समाज के वंचित वर्गों में हर्षोल्लास की लहर दौड़ पड़ी है।

    कर्पूरी ठाकुर, जिन्हें उनके अनुयायी प्यार से ‘जननायक’ कहकर पुकारते थे, बिहार की राजनीति में दलितों और पिछड़े वर्गों के प्रबल हितैषी के रूप में जाने जाते थे। 1924 में जन्मे ठाकुर ने अपना जीवन समाज के वंचित तबकों के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत आजादी के आंदोलन से हुई थी, जहां उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जमकर लड़ाई लड़ी। स्वतंत्रता के बाद, वह समाजवादी नेता के रूप में उभरे और 1952 में पहली बार विधायक चुने गए। इसके बाद, वह कभी हारे नहीं और लगातार कई चुनावों में जीत दर्ज करते हुए बिहार की जनता के दिलों में जगह बनाते गए।

    कर्पूरी ठाकुर का मुख्यमंत्री कार्यकाल (1970-1971, 1977-1979) बिहार के इतिहास में सामाजिक सुधारों के स्वर्णिम अध्याय के रूप में जाना जाता है। उन्होंने 1978 में बिहार में पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण लागू किया। यह फैसला न केवल बिहार बल्कि पूरे देश के लिए मील का पत्थर साबित हुआ और सामाजिक न्याय की लड़ाई को एक नया आयाम दिया। इसके अलावा, उन्होंने भूमि सुधारों पर जोर दिया और शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।

    ‘जननायक’ की छवि कर्पूरी ठाकुर ने सरल जीवन और जनता के प्रति समर्पण से अर्जित की थी। वह हमेशा गरीबों और किसानों के बीच रहते थे और उनकी समस्याओं को बारीकी से समझते थे। उनके सादगीपूर्ण जीवनशैली ने उनकी राजनीतिक छवि को और भी ऊंचा उठाया।

    भारत रत्न से सम्मानित होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “मुझे खुशी है कि भारत सरकार ने सामाजिक न्याय की मशाल, महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। यह सम्मान उनके वंचितों के उत्थान के लिए किए गए अनवरत प्रयासों का सच्चा प्रतिबिंब है।”

    कर्पूरी ठाकुर के सम्मान से न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में खुशी का माहौल है। यह सम्मान एक तरफ दलितों और पिछड़ों के संघर्ष के इतिहास को सलाम करता है, तो दूसरी तरफ सामाजिक न्याय और समता के लक्ष्य की ओर बढ़ने का संदेश भी देता है।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *