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    नागरिकता विधेयक का हवाले देते हुए भूपेन हजारिका को मिलने वाले भारत रत्न को उनके बेटे ने स्वीकार करने से किया मना

    बीते सोमवार को एक स्थानीय पब्लिकेशन द्वारा अमेरिका में रह रहे भूपेन हजारिका के बेटे तेज हजारिका का साक्षात्कार लेने के बाद यह खबर छपी थी कि ‘नागरिकता संशोधन बिल के कारण तेज हजारिका ने भारत-रत्न लेने से इंकार कर दिया है।

    जिसके बाद चार दिनों तक लगातार यह मामला चर्चा में रहा। आज शुक्रवार को इस विवाद पर फिर तेज हजारिका की ओर से एक बयान आया है जिसमें उन्होंने कहा कि “देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भूपेन हजारिका को मिलना बेहद सौभाग्य की बात है। यह एक सपने जैसा है। सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लिए वे सरकार और चाहनेवालों के प्रति कृतज्ञ है।” उन्होंने इस बात का दु:ख भी जताया कि शुरुआती दिनों में उन्हें गलत समझा गया।

    15 फरवरी की सुबह को तेज हजारिका ने व्हाट्सऐप के जरिए एक बयान सार्वजनिक किया। जिसमें उन्होंने कहा कि “पिता के मरणोपरांत उन्हें भारत-रत्न मिलना बेहद सम्मान की बात है। वे खुशकिस्मत है कि वो ये अवार्ड लेंगे। पिता ने जीवन पर्यंत देश की संस्कृति को बचाने का काम किया है। उनके इस काम को भारत सरकार एक पहचान दे रही है वे इससे काफी खुश हैं।”

    सोमवार को एक स्थानीय अखबार में तेज के साक्षात्कार के बाद यह खबर छपी थी कि नागरिकता संशोधन बिल के कारण उन्होंने भारत-रत्न लेने से अस्वीकार कर दिया है। इसपर तेज ने कहा कि “मैंने अखबारों वालों से यह कहा था कि मुझे सरकार की ओऱ से अबतक कोई न्योता नहीं मिला है। इस बात का सरकारों ने इतना खींच दिया जो कि शर्मनाक है।”

    नागरिकता संशोधक विधेयक के बाद तीन पड़ोसी देशों के छ: अल्पसंख्ययकों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी। किंतु राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण यह बिल वहां पेश नहीं हो पाया है। इस बिल को लेकर उत्तरी भारत में लोगों का विरोध भी जारी है।

    तेज की ओर आए ताजा बयान में उन्होंने कहा है “ज्यादा समय अमेरिका में बिताने के बावजूद भी वे अपनी जड़े नहीं भूले हैं। उनके भीतर अभी भी भारतीयपन है। उनका जन्म भारत में हुआ, उनका परिवार यहां है। भारत के प्रति वे हमेशा फिक्रमंद रहे हैं।”

    तेज हजारिका पेशे से एक कलाकार, लेखक व प्रकाशक है। इन्होंने असम के गुवहाटी में अपने पिता भूपेन हजारिका के नाम पर एक ‘भूपेन हजारिका चैरिटेबल ट्रस्ट’ नामक समाज सेवी संस्था भी खोल रखी है जो पिता की तरह ही उत्तर भारत की सभ्यता, संस्कृति को बचाने के लिए कार्य करती है।

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