अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी द्वारा संचालित एक रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाने वाला भारत अपने विशालतम युवा जन समूह को नौकरी देने में असमर्थ है।
रिपोर्ट के अनुसार रोजगार विकास की दर अब 1 प्रतिशत पर है। इसी तरह वर्ष 2015 में बेरोजगारी की दर 5 प्रतिशत थी, जो कि पिछले 20 सालों में सर्वाधिक थी।
रिसर्च में इसका कारण स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि भारत देश में बेरोजगार युवाओं और उपलब्ध नौकरियों के बीच ये बड़ा फासला कुछ कारणों से है, जिनमें से एक है ‘कौशल’ और दूसरा है ‘अच्छी नौकरी।’
तथाकथित अच्छी नौकरी से लोगों तात्पर्य है कि उन्हे काम करने की बेहतर जगह मिले, वांछित वेतन मिले। रिपोर्ट के अनुसार भारत में लोगों को उनकी अपेक्षा के अनुसार नौकरी नहीं मिल पा रही है। इसका मुख्य कारण है कि देश में लोग व्यवसाय में आकर नौकरियों को पैदा नहीं करना चाह रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर आईएमएफ़ की रिपोर्ट के अनुसार भारत मार्च 2019 तक 7.3% की दर से वृद्धि के साथ विश्व की सबसे तेज़ी से आगे बढ्ने वाली अर्थव्यवस्था होगा।
इसके बावजूद वर्तमान समय में भारत में 2 करोड़ तीस लाख लोग नौकरी की तलाश में हैं। इन लोगों में अधिकतर स्नातक हैं या 12वीं तक पढ़े हैं।
देश में उत्पन्न बेरोजगारी भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी के लिए 2019 के चुनाव में बड़ा सरदर्द बन सकती है।
वर्ष 2015 के आंकड़ों के अनुसार भारत में कुल 46 करोड़ 70 लाख लोगों के पास रोजगार था, जिनमें 46.6 प्रतिशत लोग खुद का कोई काम कर रहे थे, 32 प्रतिशत लोग अस्थायी कामगार थे, 17 प्रतिशत लोग नियमित कर्मचारी थे, वहीं बाकी अन्य बेरोजगार थे।
भारत में मिलने वाले वेतन को लेकर भी लोगों में संतुष्टि नहीं है, उनका मानना है कि भारत में लेबर की अपेक्षा उच्च अधिकारियों की तनख्वाह में अधिक दर के साथ वृद्धि की जाती है।