भारत और ब्रिटेन आपस में करीबी एवं दोस्ताना रिश्ता साझा करते हैं। साल 2004 में दोनों के बीच द्विपक्षीय सम्बन्धों को स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप का रूप भी दिया गया।
ऐतिहासिक तौर पर बात की जाये तो दोनों देशों के बीच एक बेहद पुराना रिश्ता है और ब्रिटेन के द्वारा किये गए लगभग 200 साल लंबे शासन ने भारत के ऊपर गहरा असर डाला है।
इस लेख के ज़रिये हम भारत-ब्रिटेन के बीच सम्बन्धों के विभिन्न पहलुओं को गहराई से जानने की कोशिश करेंगे:
इतिहास
ईस्ट इंडिया कंपनी(1600-1857): भारत में ब्रितानी पैर ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरुआत के साथ साल 1600 में पड़े। कंपनी ने 1611 में भारत के पूर्वी तट पर मछिलिपटनम में एक कारखाने की स्थापना के साथ भारत में पकड़ बनायी और इसके पश्चात् उसने मुगल सम्राट जहांगीर से 1612 में सूरत में एक कारखाना स्थापित करने के अधिकारों का अनुदान प्राप्त किया। दशकों तक कंपनी अपने पैर पसारते रही और धीरे-धीरे भारत के पूर्वी तट में ख़ुद को स्थापित कर लिया। कमज़ोर होते मुग़ल शासन, 1757 में प्लासी और 1764 में बक्सर की लड़ाई में कंपनी की जीत ने उसकी ताकत और बढ़ाई। 1773 तक उसने गंगा नदी के नीचे के बड़े इलाकों पर अपना शासन जमा लिया। 18वीं सदी के अंत में मैसूर और मराठा जैसे राज्यों को हराने के बाद कंपनी के सामने कोई खतरा नहीं रहा और और जल्द ही वह पूरे भारत पर राज करने लगी। हालांकि 1857 के भारतीय विद्रोह के अगले वर्ष कंपनी को भंग कर दिया गया।
अंग्रेजी राज (1858-1947): ईस्ट इंडिया को भंग करने के बाद अंग्रेज़ सरकार ने भारत का शासन नियंत्रण ख़ुद अपने हाँथ ले लिया। 1876 में भारत का अधिकारिक नाम ‘इंडियन एम्पायर’(भारतीय साम्राज्य) कर दिया गया, जिसमें आज के पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल थे। इस दौरान भारतीय-ब्रितानी सेना का गठन भी किया गया जिसने अनेक मौकों पर ब्रिटेन का साथ दिया, इनमें दोनों विश्वयुद्ध भी शामिल थे। भारत में आज़ादी के लिए बढ़ते और मजबूत होते आंदोलन और विश्वयुद्ध से बड़ी आर्थिक ताकत खो चुके ब्रिटेन का अंदरूनी विरोधों से सामने की वजह से आखिरकार भारत को 15 अगस्त, सन् 1947 को अंग्रेज़ी शासन से मुक्ति दिलाई।
आज़ादी के बाद: 1947 में स्वतंत्र भारत का विभाजन भारतीय संघ और पाकिस्तान के डोमिनियन के रूप में हुआ। राष्ट्रमंडल राष्ट्रों के भीतर ब्रिटिश सम्राट के रूप में राजा जॉर्ज VI का “भारत का सम्राट” होने का शीर्षक 1947 में हट गया। 1950 में भारत एक गणराज्य बन गया और ब्रितानी हुकूमत के साथ उसके शासन संबंधी रिश्ते पूरी तरह टूट गये।
सांस्कृतिक सम्बन्ध:
200 सालों के साझा इतिहास ने भारत और ब्रिटेन के बीच गहरे एवं व्यापक सांस्कृतिक रिश्तों का निर्माण किया। भारतीय संस्कृति की विभिन्न चीज़ें धीरे-धीरे ब्रितानी मुख्यधारा में शामिल हुई हैं। इनमें मुख्यतः भारतीय पकवान, सिनेमा और दर्शनशास्त्र हैं। इसकी प्रमुख वजह ब्रिटेन में भारत की एक बड़ी जातीय आबादी का बसा होना है।
नेहरु सेंटर के नाम से भारतीय उच्चायोग की सांस्कृतिक शाखा को सन् 1992 में स्थापित किया गया। मंत्री स्तर पर 2014 में भारत-ब्रिटेन के बीच सांस्कृतिक सहयोग के समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, यह समझौता 2019 तक प्रभावी रहेगा।
2017, भारत और ब्रिटेन ने संस्कृति वर्ष के रूप में मनाया, जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नवम्बर 2015 की यूके यात्रा के दौरान घोषित किया गया था।
द्विपक्षीय व्यापार:
यूके, भारत के सबसे बड़े व्यापार साथियों में से एक है। 2014-15 के आंकड़ों के मुताबिक यूके भारत का 18वां सबसे बड़ा व्यापार साथी है।
हालांकि दोनों के बीच के व्यापार अपनी संभावित क्षमता को नहीं छू पाया है। वाणिज्य विभाग द्वारा जारी किये आंकड़ों को देखा जाए तो 2014-15 के दौरान द्विपक्षीय व्यापर 14.33 बिलियन डॉलर रहा जोकि 2013-14 के मुकाबले 9.39 प्रतिशत कम था। ब्रिटेन का भारतीय वैश्विक व्यापर में योगदान भी 0.18 प्रतिशत की कमी के साथ 2014-15 में 1.89 प्रतिशत रहा।
भारत के ब्रिटेन को किये जाने वाले मुख्य निर्यात में टेक्सटाइल, मशीनरी, पेट्रोलियम उत्पाद, जूते और चमड़ा, रत्न, आभूषण, इंजीनियरिंग सामान, दवाईयां और मसाले शामिल हैं।
दूसरी तरफ़ ब्रिटेन से किये जाने वाले मुख्य आयातित सामान में मशीनरी उपकरण, अयस्क, धातु के स्क्रैप, क़ीमती पत्थर, चांदी, विमान भाग, पेय पदार्थ, अन्य व्यावसायिक उपकरण के अलावा इलेक्ट्रॉनिक, अलौह धातु और रसायन जैसे उत्पाद शामिल हैं।
निवेश की बात की जाए तो ब्रिटेन भारत में मॉरिशस के बाद तीसरा सबसे बड़ा ‘इनवर्ड इन्वेस्टर’ है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआई) में ब्रिटेन का जी20 देशों में पहला नंबर आता है। भारत को अप्रैल 2000 से सितंबर 2015 तक आये कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का 9 प्रतिशत ब्रिटेन की तरफ़ से रहा। हालांकि पिछले 3 सालों पर नज़र डाली जाये तो यह निवेश 2011-12 के 7.8 बिलियन डॉलर से काफ़ी नीचे आकर 2014-15 में मात्र 1.4 बिलियन डॉलर रह गया।
नरेन्द्र मोदी की 2015 की यूके यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने रक्षा सहयोग बढ़ाने, रणनीतिक क्षमताओं के हस्तांतरण, नए क्षेत्रों में शोध व विकास और अन्तराष्ट्रीय खतरों से निपटने आधारभूत संरचनाओं को मज़बूत करने के लिए सहमत हुए।
शिक्षा:
शिक्षा भारत-ब्रिटेन के बीच द्विपक्षीय सम्बन्धों का एक अहम मुद्दा है। पिछले 10 वर्षों में इंडिया-यूके एजुकेशन फोरम, इंडिया-यूके एजुकेशन एंड रिसर्च इनिशिएटिव, न्यूटन-भाभा फण्ड एवं स्कालरशिप्स जैसे द्विपक्षीय यंत्रों ने शिक्षा सम्बन्ध काफ़ी मज़बूत किये हैं और इससे दोनों देशों के छात्रों को काफ़ी फायेदा पहुंचा है।
इसके अलावा 2016 को भारत-ब्रिटेन ने शिक्षा, शोध और नवीनता के वर्ष के रूप में मनाया। साथ ही ब्रिटेन की योजना में 2020 तक बीस हज़ार ब्रितानी छात्रों को जनरेशन यूके-इंडिया प्रोग्राम के तहत भारत भेजना है, इनमें 1000 छात्रों का टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के साथ प्रशिक्षु के रूप में जुड़ना भी शामिल है।