सुप्रीम कोर्ट के एस.सी/एस.टी एक्ट पर फैसले के बाद दलित समूह पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 2009 के एक मामले की सुनवाई करते हुय बहुचर्चित एस.सी/एस.टी एक्ट के खिलाफ फैसला दिया था।
दलित समूहों का आरोप है कि इस फैसले से यह कानून कमजोर हो जायेगा और इसका असर खत्म हो जायेगा, जिससे दलितों पर प्रताड़णा के मामले बढ़ सकते हैं।
क्या है फैसला
- कोर्ट के आदेश के अनुसार पहले जहां एस.सी/एस.टी एक्ट में दलित प्रताड़ना पर तुरन्त गिरफ्तारी का प्रावधान था, वहीँ अब तत्काल गिरफ्तारी नहीं की जायेगी।
- शिकायत मिलने पर उक्त मामले की डी.एस.पी स्तर के अधिकारी द्वारा जांच की जायेगी और फिर जांच के आधार पर गिरफ्तारी करने या ना करने का फैसला लिया जायेगा।
- साथ ही इस एक्ट के तहत दर्ज होने वाले मामलों में अग्रिम जमानत के प्रावधान को जोड़ दिया गया है।
- इसके अतिरिक्त सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी अपोइंतिब ऑथोरिटी के स्तर के अफसर की मंजूरी के बिना नहीं हो सकती।
- गैर सरकारी कर्मचारी को गिरफ्तार क्तने के लिये एस.एस.पी की मंजूरी अनिवार्य होगी।
कोर्ट के फैसले का उद्देश्य निर्दोष लोगों को इस एक्ट में फसाए जाने की प्रताड़ना से बचाना है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में कहा कि इस कानून का उद्देश्य दलितों की सुरक्षा करना था पर इसका इस्तेमाल बेगुनाहों की प्रताड़ना के लिए भी किया जाता है। और ये फैला इसे रोकने में कारगर साबित होगा।
दलित संगठनों की मांग
दलित संगठन इस फैसले को लेकर चिंता जता रहे हैं। उनके अनुसार इस एक्ट को 1989 के संशोधन के साथ पहले की तरह लागू किया जाना चाहिए। अन्यथा दलितों पर अत्याचार बढ़ेंगे व समाज में दरार उतपन्न होगा।
सरकार का रुख
केंद्र सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायलय में पुनरविचार याचिका दायर की है।
केंद्र सरकार की दलील यह है कि यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 21 की अवहेलना करता है, जिसके तहत दलितों व आदिवासियों को सामाजिक न्याय व समानता देने का प्रावधान है।
सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर पुनर्विचार करेगा।
राजनैतिक दबाव
सरकार पर विपक्ष और दलित समूहों के आलावा अपनी नेताओं व सांसदों का दबाव भी पड़ रहा है। फैसले के बाद केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान व थावरचन्द गहलौत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जाकर मिले थे और उन्हें स्थिति की पूरी जानकारी भी दी।
अन्य दलित सांसदों ने भी रामविलास पासवान व सावित्री बाइ फुले के नेतृत्व में संसद के बाहर प्रदर्शन किया।
राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने भी इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन किया।
बन्द का असर
दलित समूहों द्वारा बुलाये गए इस बन्द का व्यापक असर पंजाब, राजस्थान, उत्तरी हरियाण, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, विहार था मध्य प्रदेश में देखने को मिला।
- मध्य प्रदेश में बन्द के कारण पुलिस से हुई झड़पों में चार लोगों की मौत हो गयी।
- मध्य प्रदेश के ही ग्वालियर में दो गुटों में झड़प हुई और फायरिंग की वीडियोज़ भी सामने आई।
- उत्तर प्रदेश के मेरठ में प्रदर्शन कारियों ने एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी।
- उत्तर प्रदेश से बसपा के एक पूर्व विधायक को दंगे फैलाने के आरोप केन गिरफ्तार किया गया।
- दिल्ली के करीब गुड़गांव में भी कुछ जगहों पर दलित समूहों ने चक्का जाम करने की कोशिश की।
- राजस्थान के बाड़मेर में करनी सेना व दलित प्रदर्शन कारी आमने सामने आ गए। जयपुर में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के महल पर पतथर-बाजी हुई।
गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणी ने भी इन विरोध प्रदर्शनों को अपना समर्थन दिया है।
भाजपा ने उत्तर प्रदेश में बसपा व सपा पर हिंसा फैलाने के आरोप लगाया हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस बात को नकारते हुए कहा है कि इस घटना के पीछे असामाजिक तत्वों का हाथ है।
रामविलास पासवान ने बिहार में जातिगत हिंसा के पीछे कोंग्रेस व राष्ट्रीय जनता दल की मिलीभगत को जिम्मेदार ठहराया।
अभी आवश्यकता है कि सरकार व दलित नेता आपस में बैठ कर इस मामले पर विचार करना।
उच्च न्यायालय के फैसले के बाद उसकी तौहीन करते हुए पूरे देश को बन्दी बनाने की कोशिश करना उचित नहीं है।