भारतीय सेना के प्रमुख जनरल बिपिन रावत के बयान अक्सर तेज़ होते हैं, लेकिन यह हमेशा खबरों के लिए फायदेमंद होता है। बहरहाल, हाल ही में जनरल रावत को पाकिस्तान से खतरे की कम चिंता है। हाल ही न्यूयॉर्क टाइम द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक जनरल बिपिन रावत ने गुपचुप तरीके से पाकिस्तानी समकक्षी जनरल जावेद कामत बाजवा से मुलाकात की थी, इसे स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट बिल्कुल गलत है।
इसके बाद कहा गया कि पाकिस्तान में आम चुनावों से पूर्व ही पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष ने भारतीय सेनाध्यक्ष से मुलाकात की थी। इसके बाद फिर रिपोर्ट में कहा गया कि पाकिस्तान के लिए भारत तक पंहुच बनाने का महत्वपूर्ण उद्देश्य दोनो देशों के मध्य व्यापार अवरोधों को हटाना है, ताकि पाकिस्तान क्षेत्रीय बाज़ारों तक पंहुच सके। कश्मीर मसले पर कोई अंतिम समझौता ही विश्वास बहाल करेगा और द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि की संभावना बढ़ जाएंगी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अब व्यापार और निवेश जैसे मुद्दों पर अपना रुझान दिख रहे हैं, क्योंकि उन्हें एहसास है कि पाकिस्तान की पिछड़ी अर्थव्यवस्था को पट्टी पर लाकर ही देश को बेहतर बनाया जा सकता है।
अक्टूबर 2017 में पाकितान के चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री में अपने भाषण के दौरान उन्होंने पाकिस्तान पर आसमान जितने उच्च ऋण का जिक्र किया था, जो उनकी चिंताएं व्यक्त कर रही थी। उन्होंने कहा कि या तो द्वश एक साथ डूब जाएगा या पार हो जाएगा। अपने भाषण के आखिर में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष ने चीन-पाक आर्थिक गलियारे पर जोर दिया। इसमे उन्होंने सीपीईसी को बेचने में अपनी आवाज़ बुलंद की थी।
पाकिस्तानी प्रमुख का आखिर अपने समकक्षी तक पंहुचने का उद्देश्य क्या था। जबकि वह अच्छी तरह से जानते है कि भारतीय सेना नागरिक सेवा और लोकतांत्रिक फायदे के लिए राजनैतिक नेतृत्व से बंधी हुई है। आधिकारिक राजनीतिक बातचीत में मिल टू मिल बातचीत शायद ही संभव हुई हो। सामान्य तौर पर राजनेता पहले बैठते है और मसले पर बातचीत करते हैं। उसके कई बाद सेना की मुलाकात के बाद बातचीत होती है। सेना की बातचीत पर पाबंदी नही है लेकिन यह केवल एकमात्र मुलाकात के लिए हैं। जैसे नियंत्रण रेखा को मजबूत करने, सीमा उल्लंघन के मसला इन पर मुलाकात होती है।
दोनों राष्ट्रों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्वतंत्र रूप से बातचीत कर सकते हैं। लेकिन भारत के सेनाध्यक्ष विभाग से किसी तरह की बातचीत के लिए समर्थ नहीं हैं। हालांकि कश्मीर मसले पर बातचीत हो सकती है, जिससे दोनों सेनाध्यक्ष वाकिफ हैं। क्या पाकिस्तान कश्मीर मसले को किनारे पर रखकर, व्यापार को खोलने और सर क्रीक के प्रस्ताव पर बातचीत करने के इच्छुक होगा?
पाकिस्तान में सेना बातचीत की दिशा पर निर्णय लेती है, वही भारत मे नौकरशाह तय करता है कि कब अंतिम निर्णय लेना है। शीर्ष स्तर की बातचीत हमेशा फलदायी होती है चाहे फिर इसके लिके आपको अपनी गर्दन को झुकना ही क्यों न पड़े।