अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने कहा कि “भारत के साथ पाकिस्तान की हालिया बातचीत की पहल को इस्लामाबाद पर आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय दबाव के तौर पर भी देखा जाना चाहिए। पाकिस्तान को वैश्विक सम्मान के लिए भारत के साथ बातचीत की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन उनकी प्रभावशाली सेना कभी भारत के साथ सामान्य रिश्तो को कबूल नहीं करेगी।”
वांशिगटन में पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने अप्पने विचारो को दोहराया कि भारत और पाकिस्तान के अधिकारीयों के बीच उच्च स्तर की वार्ता फलदायी नहीं हो सकती है जब तक पाकिस्तान वहां स्थित में आतंकी ढांचों को नष्ट न कर दे और भारत व पाकिस्तान को स्थायी दुश्मन मानना न त्याग दे।”
उन्होंने कहा कि “साल 1950 से दिसंबर 2015 तक दोनों देशों के नेताओं ने 45 दफा मुलाकात की थी लेकिन बातचीत कभी स्थायी शान्ति के लिए नहीं हुई थी। बातचीत के दरवाजों को स्थायी तौर पर बंद नहीं करना चाहिए और न ही बातचीत को खुद ही खत्म कर देना चाहिए।”
हक़्क़ानी इस वक्त हडसन इंस्टिट्यूट में दक्षिण और मध्य एशिया के डायरेक्टर हैं और उन्हें पाकिस्तान के शासन और जिहादी विचारधारा के आलोचक के तौर पर जाना जाता है। हक्कानी के विचारो के मुताबिक, भारत के खिलाफ खौफनाक गतिविधि पाकिस्तान की राष्ट्रीय विचारधारा है जो धार्मिक पहचान पर आधारित है। भारत के खिलाफ घृणा सेना द्वारा उपजायी हुई है जो देश पर असल में हुकूमत करती है।”
उन्होंने कहा कि “अन्य देशों के माफिक भारत और पाकिस्तान के बीच भी कुछ अनसुलझे मामले हैं लेकिन अन्य देशों की राष्ट्रीय विचारधारा विपक्षियों और अन्य लोगो के इर्द-गिर्द नहीं घूमती है। पाकिस्तान को ब्रितानी भारतीय सेना का एक-तिहाई भाग विरासत में मिला है जिसे दुसरे विश्वयुद्ध के दौरान निर्मित किया गया था।”
हक्कानी ने कहा कि “अन्य देशों की सेना की तरह पाकिस्तान की सेना बाहरी खतरे के अनुपात को उजागर नहीं करती है। अपने दावे को सही साबित करबे के लिए उन्हें खतरे के माप को बताने की जरुरत है।”