कैथोलिक गैर सरकारी संघठन द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के हर पांच देशों में से एक में धार्मिक आज़ादी पर खतरा मंडरा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक यह बढती उग्रराष्ट्रवाद की भावना के कारण संभव हो रहा है। रिपोर्ट में बीते दो सालों में 21 देशों में धार्मिकता पर हमले का अध्य्यन किया है। इसमें म्यांमार, चीन और भारत भी शामिल है।
इस तरह के धार्मिक हमले 17 अन्य देशों में भी हुए हैं मसलन तुर्की, अल्जीरिया और रूस में भी धार्मिक कट्टरता बढ़ी है। 196 देशों की धर्मों के अध्य्यन की यह समूह की 14 वीं रिपोर्ट है। यह समूह प्रति दो वर्षों में स्वतंत्र पत्रकारों के माध्यम से रिपोर्ट जारी करता हैं।
इस एनजीओ के प्रमुख मार्क फ्रोमगेर ने कहा कि हमने धार्मिक स्वतंत्रता पर महत्वहीन हमलों का अध्य्यन किया है। उन्होंने कहा कि 38 देशों में धार्मिक आज़ादी पर खतरा मंडरा रहा है लेकिन 18 ऐसे देश है जहां हालात बहुत बुरे हैं। इन देशों में दुनिया की सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश भारत और चीन भी शुमार है। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों के साथ यह बेहद भयावह सुलूक हैं या कह सकते हैं कि यह आक्रामक अल्ट्रानेशनलिज्म हैं।
चीन का उदहारण देते हुए प्रमुख ने कहा कि ईसाईयों के धार्मिक स्थलों को ध्वस्त किया जा रहा है और उइगर मुस्लिमों को रमजान पर नमाज़ अदा करने से रोका जा रहा है जबकि तिब्बत की बौद्ध लोग अभी भी उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। भारत न सिर्फ धार्मिक कट्टरता बल्कि आज़ादी के सात दशक बाद भी जातिवाद के चंगुल से भी आज़ाद नहीं कर पाया है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक आतंकवादी समूह इस्लामिक स्टेट का प्रभाव कम होने से इराक और सीरिया की स्थिति सुधरी है क्योंकि कई वहां के अल्पसंख्यक ईसाई अपने घर वापस लौट रहे हैं। ख़बरों के मुताबिक चीन ने हाल ही लाखों उइगर मुस्लिमों को शिनजियांग प्रांत में शिविरों में नज़रबंद रखा है।