एशिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ भारत और चीन और इन दोनों ही देशों में जहरीली हवा का प्रकोप अपने चरम पर है। एक ओर जहाँ चीन काफी लंबे समय से अपने शहरों में छाई धुंध व प्रदूषण के प्रकोप से जूझ रहा है, वहीं भारत भी अब उसी पंक्ति में खड़ा हो गया है।
राजधानी दिल्ली के आसमान में फैले प्रदूषण के चलते लोगों को न सिर्फ सांस संबंधी दिक्कतें हो रहीं है, बल्कि उन्हे इस प्रदूषण के चलते कैंसर जैसी बीमारियाँ भी जकड़ रही है।
हाल ही में राजधानी के अस्पतालों में ऐसे कई केस देखने को मिले हैं जिन्हे प्रदूषण की वजह से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियाँ हुई हैं।
दिल्ली के ही एक कैंसर सर्जन ने आंकड़ों को सामने रखते हुए बताया है कि वर्ष 1988 में करीब 90 प्रतिशत मामलों में उन नव युवकों को फेफड़ों का कैंसर होता था, जो धूम्रपान करते थे, लेकिन आज 60 प्रतिशत से अधिक केसों में ऐसे युवक होते हैं, जिन्होने कभी धूम्रपान किया ही नहीं।
प्रदूषण से परेशान जनता का मानना है कि एक ओर जहाँ सरकार देश की अर्थव्यवस्था को लेकर इतनी चिंता व्यक्त कर रही हैं, वही दूसरी ओर सरकार देश में भर में फैले वायु प्रदूषण को लेकर कोई भी ठोस कदम नहीं उठा रही है।
वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में स्वास्थ सेवाओं के ऊपर होने वाला खर्च देश की कुल जीडीपी का 8.5 प्रतिशत है। इस हिसाब से देश की 2.6 हज़ार अरब डॉलर की जीडीपी में से 221 अरब डॉलर सिर्फ स्वास्थ सेवाओं में खर्च हो जाते हैं। ऐसे में यदि सरकार प्रदूषण रोकने के लिए कोई बेहद कड़ा प्लान लेकर आती है, तो स्वास्थ सेवाओं के एवज में न सिर्फ सरकार का पैसा बचेगा बल्कि आम जनता को भी आर्थिक रूप से काफी राहत मिलेगी।
प्रदूषण के लिहाज से सबसे खतरनाक पीएम 2.5 भी अब 200 के खतरनाक स्तर तक पहुँच गया है। वर्ष 2017 में ये 84 व 2015 में 66 पर था।
इसी के साथ ताजा जारी हुई रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत के 15 शहर शामिल हैं।
ऊपर दिये गए आंकड़ों के अनुसार कानपुर विश्व का सबसे अधिक प्रदूषित शहर है। इस सूची में शामिल किए गए विश्व के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 15 शहर भारत के ही हैं।
वहीं केंद्रीय पर्यावरण मंत्री हर्ष वर्धन ने कहा है कि “सरकार इस दिशा में काम कर रही है। हम इसे लेकर आराम से नहीं बैठे हैं।”