भारत और इज़राइल आपस में व्यापक आर्थिक, रक्षा, और सामरिक सम्बन्ध साझा करते हैं। इस वक्त इज़राइल के हथियार बाज़ार का सबसे बड़ा ग्राहक भारत है।
दोनों देशों के बीच का व्यापार 2014 के आंकड़ों के मुताबिक 4.52 बिलियन डॉलर रहा और द्विपक्षीय व्यापार को अगली उंचाईयों तक ले जाने के लिये दोनों देशों के बीच नि:शुल्क व्यापर समझौते पर भी बातचीत चल रही है।
भारत-इज़राइल के सम्बन्ध ने नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद और जोर पकड़ा जब मोदी शासन ने 2015 में संयुक्त राष्ट्र में इजराइल के खिलाफ़ वोट करने से परहेज़ किया।
इस लेख के ज़रिये हम भारत-इज़राइल संबंध को विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे।
इजराइल की गैर मान्यता:
महात्मा गाँधी का मानना था कि यहूदियों का इज़राइल के लिए अच्छा और पुराना दावा बनता है, मगर इसके बावजूद वो धर्म के आधार पर किसी देश को बांटने के खिलाफ़ थे क्योंकि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच एक बेहद हिंसात्मक बंटवारे को देखा था। इसलिए भारत ने 1947 में फिलिस्तीन के विभाजन से जुड़ी योजना के खिलाफ अपना मत दिया।
इसके पश्चात् 1949 में फिर भारत ने इज़राइल के संयुक्त राष्ट्र में शामिल होने के ऊपर हो रहे मतदान में उसके खिलाफ वोट दिया।
हालांकि भारत में हिंदू राष्ट्रवाद से जुड़े कुछ लोगों ने इज़राइल के साथ सहानुभूति दिखाई और इजराइल का नैतिक और राजनैतिक आधार पर समर्थन जताया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेता माधव सदाशिव गोलवलकर यहूदी राष्ट्रवाद के समर्थक थे और मानते थे कि इज़राइल का गठन और फिलिस्तीन के क्षेत्र पर यहूदियों का हक़ था।
1950 में राष्ट के रूप में मान्यता:
17 सितंबर 1950 को भारत ने इज़राइल को राष्ट्र के रूप में मान्यता दी। इस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु ने कहा था कि इज़राइल एक सच्चाई है और भारत ने अब तक उसे मान्यता अपने अरब देशों को नाराज़ करने के डर से नहीं दी थी। 1953 में इज़राइल को मुंबई में वाणिज्य दूतावास खोलने की इजाज़त दी गयी।
हालांकि इज़राइल से पूर्ण राजनयिक सम्बन्ध नही बनाये गए चूंकि इससे अरब देशों से रिश्ते बिगड़ने का डर अभी भी था। भारत की उर्जा ज़रूरत के लिये तेल का बड़ी मात्र में आयत अरब देशों से था तथा वहां कार्यरत हज़ारों भारतीय देश के विदेशी मुद्रा भंडार बनाये रखने में मददगार थे।
सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी भी इज़राइल से सम्बन्धों के खिलाफ थी चूँकि उसका मानना था की इज़राइल पकिस्तान की तरह ही धर्म के आधार पर बना देश है।
दशकों तक चले इसी तरह के सम्बन्धों के बावजूद इज़राइल के साथ मुलाकात और सहयोग का दौर चलता रहा जिसमे मोशे दयान जैसे लोग शामिल थे जोकि इजराइल में प्रभावशाली राजनीतिक और सैन्य नेता थे।
1992 के बाद का दौर:
इज़राइल के तेल अवीव में भारत ने आख़िरकार 1992 में, सालों से अपनाई अरब समर्थक नीति को किनारे रखते हुए अपना दूतावास खोला और इज़राइल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध की शुरुआत हुई। तबसे लेकर आज तक दोनों देशों ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और रिश्तों ने उचाईयों को छूआ।
जनवरी 1997 में इज़र वेइज्मान भारत आने वाले पहले इज़रायली राष्ट्राध्यक्ष बने। भारत से तत्कालीन गृहमंत्री एलके अडवाणी ने सन् 2000 में तेल अवीव का दौरा किया और दोनों देशों के बीच आतंकवाद से निपटने के ऊपर विस्तृत चर्चा हुई। इसी तरह 2003 में एरिएल शेरोन इज़राइल के पहले प्रधानमंत्री बने जिन्होंने भारत का दौरा किया।
इज़राइल के ऊपर समय-समय पर फिलिस्तीनी क्षेत्र में सैन्य कार्रवाई के दौरान मानवाधिकारों के उलंघन के आरोप लगते रहते हैं।
2014 में इजराइल-हमास के बीच चले लंबे और तीखे तनाव के बीच विपक्षी पार्टियों ने इज़राइल के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास करने का ज़ोर डाला। इस पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि भारत फिलिस्तीन के मुद्दों का समर्थन करता है और साथ ही इज़राइल के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाये रखने में भी विश्वास रखता है और इस प्रस्ताव को पारित होने से रोक दिया।
2017 में पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इज़राइल का दौरा किया। इस दौरान रक्षा , व्यापर और वैज्ञानिक शोध सम्बन्धी अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर हुए।
द्विपक्षीय व्यापार:
भारत और इज़राइल के बीच द्विपक्षीय व्यापार 1992 के 200 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2014 में 4.52 अरब डॉलर हो गया है।
2014 के आंकड़ों के मुताबिक भारत, इज़रायल का दसवां सबसे बड़ा व्यापार साझेदार और आयात स्रोत है, और सातवां सबसे बड़ा निर्यात स्रोत है। इज़राइल को भारत के प्रमुख निर्यात में अनमोल पत्थर और धातुएं, कार्बनिक रसायन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, वाहन, कपड़े और वस्त्र शामिल हैं।
वहीँ दूसरी तरफ़ इज़राइल के भारत को किये निर्यात में मुख्यतः रक्षा उत्पाद, मेडिकल उपकरण, फ़र्टिलाइज़र, मशीनी कलपुर्ज़े आदि शामिल हैं।
दोनों देशों ने खेती में सहयोग और जल संसाधन प्रबंधन के लिए 2016 में समझौते किये।
नि:शुल्क व्यापर समझौते के तहत जो वार्ता जारी उससे भारत और इज़राइल के बीच व्यापर को 5 बिलियन डॉलर से बढाकर 10 बिलियन डॉलर तक पहुँचाने की उम्मीद की जा रही है।
रक्षा सम्बन्ध:
इज़रायली हथियार आज दुनिया में सबसे उन्नत तकनीक वालों में से एक माने जाते हैं। अपनी सैन्य ताकत को उन्नत करने और पुराने पड़ते सोवियत उपकरणों को अपग्रेड करने के लिये भारत सरकार ने इज़राइल के रक्षा उद्योग के ऊपर भरोसा जताया है।
इस सिलसिले में भारत और इज़राइल के बीच कई बड़े सौदे हुए। ज़मीन से हवा में मार सकने वाली बराक मिसाइल प्रणाली के लिये 1997 में समझौता हुआ। भारतीय वायुसेना ने इज़राइल से 220 मिलियन डॉलर के 200 ड्रोन की ख़रीद 2005 में पूरी की। इसके अलावा फैलकन ‘एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड डिटेक्शन सिस्टम’ को भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया।
सेना के लिए टैंक भेदी स्पाइक मिसाइल प्रणाली की प्राप्ति की गई। साथ ही अनेक छोटे और अत्याधुनिक हथियारों को सैन्य बल में शामिल किया गया।
भारत-इज़राइल नियमित तौर पर आतंक विरोधी अभ्यास में हिस्सा लेते रहते हैं। भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ एवं इसरायली एजेंसी मोसाद के बीच ख़ुफ़िया जानकारी के आदान प्रदान से आतंकी गतिविधियों पर नज़र और रोकथाम में भी काफ़ी मदद मिलती है।