शोध थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) की एक रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन ने देश में अक्षय ऊर्जा प्रतिष्ठानों को धीमा कर दिया और इस तरह की स्थापना की गति भारत के 2022 के लक्ष्य से पीछे है।
रिपोर्ट लेखक और ऊर्जा अर्थशास्त्री विभूति गर्ग ने कहा कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की अपनी प्रतिबद्धता के हिस्से के रूप में भारत ने कहा है कि वह 2022 तक 175 गीगावाट और 2030 तक 450 गीगावाट हरित ऊर्जा स्थापित करेगा। लेकिन वित्तीय वर्ष 2020-21 में ऐसी क्षमता का केवल 7 गीगावाट जोड़ा गया था। बता दें कि एक गीगावाट में कुल1,000 मेगावाट होते हैं।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के डेटा से स्वतंत्र रूप से पता चलता है कि भारत को मार्च 2023 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करनी थी – जिसमे कुल 40 गीगावाट रूफटॉप सोलर और 60 गीगावाट ग्राउंड-माउंटेड यूटिलिटी स्केल ऊर्जा स्त्रोत शामिल थे। हालाँकि देश में 31 जुलाई, 2021 तक केवल 43.94 गीगावाट ऊर्जा ही स्थापित करने में सफलता प्राप्त हुई है।
भारत में सबसे बड़े पावर एक्सचेंज, इंडियन एनर्जी एक्सचेंज (आईईएक्स) में मासिक वॉल्यूम और कीमतों के अपने विश्लेषण में, आईईईएफए अध्ययन में पाया गया कि व्यापार की गई बिजली की मात्रा 2020 से 20% की वृद्धि हुई गई। साथ ही यह 2019 के आंकड़े से 37% और 2018 से 30% अधिक तक बढ़ी है। इससे कीमतों में 2020 की दरों से औसतन 38%, 2019 के आंकड़े से 8% और 2018 की तुलना में 11% की वृद्धि हुई।
विभूति गर्ग कहती हैं कि, “स्पष्ट रूप से जैसे-जैसे आर्थिक विकास फिर से शुरू हो रहा है, बिजली की मांग बढ़ रही है और एक्सचेंज में औसत कीमतें भी बढ़ रही हैं।” रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर अक्षय ऊर्जा, विशेष रूप से पवन और जल विद्युत तक अधिक पहुंच होती, तो यह ऊर्जा की कीमतों को कम करने में योगदान दे सकती थी।
आईईईएफए के विश्लेषण से पता चलता है कि 2020-21 के अंत में कोयले का स्टॉक 1,320 लाख टन के नए रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गए और यह पिछले पांच वर्षों के मासिक औसत से अधिक हो गए। आयातित कोयले पर अपनी निर्भरता कम करने और इस निर्भरता को घरेलू कोयले से बदलने के बा दभारत के सबसे बड़े कोयला उत्पादक कोल इंडिया लिमिटेड के पास लगभग दो महीने की आपूर्ति है।